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अनुसंधान-२४
इम ए साते निह्नव लह्या देशविसंवादी जिन कह्या । सहसमल्लनइ को नहीं समो सर्वविसंवादी आठमो ॥२१॥ जाणी निह्नवतणो प्रकार पुण्यवंत कीजइ परिहार । जिनआणा सूधी अणुसरो सुकवि कहि शिववनिता वरो ॥२२॥
॥ इति निह्नवविचार-सज्झाय ॥
(९) वाचक नयसुंदर विरचित-३-मित्र उपनय सज्झाय श्रीजिनशासन पामीइ, गुरुचरणे शिर नामीइ,
धामीइ सेना अंतरिपुतणी ए ॥१॥ सांभलयो सहू धामीइ, मुगतितणा जे कामीइ
खामीइ जीव सवे स्युं हित भणी ए ॥२॥
ढाल हित भणी कहुं सीख रसाली सांभलि रे तुं प्राणी । हियडा भितरि आणु अनुदिन श्रीजिनवरनी वाणी ॥३|| लाख चोरासी जीवा योनि माहिं भम्यो अनंतीवार । जिन दरिसण साचु पाम्या विण नवि छूटो संसार ॥४॥ एणि जगि सहूइ सवारथ मलीओ ताहरि कुंण हितकारी । श्रीजिनधर्म विना नही कोइ साचुं जोए विचारी ॥५॥ एणि अवसरि अधिकार अपूरव जीव जोए तुं जागी । जे दोहलि तुझ अरथि आवि तेहनो होजे रागी ॥६॥ जिम कोइक मही मंडल नयरि प्रजापाल भूपाल । तेह नइ सुबुद्ध नामि छइ महितो बहु बुद्धिवंत दयाल ॥७॥
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