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अनुसंधान-२४ गुणविजय साहिब गुणमणि दरीओ
केवलकमलानिर्मल वरीओ । पावन परिवारइ परवरीओ
पुण्य प्रसादि भवजल तरीओ ॥५॥ एहवो एक श्रीसांतिनाथ
अनाथनो नाथ मोक्षमार्गनो साथ । सोलमो तित्थंकर
पांचमो चक्रवर्ती । अम्हारि कुलगोत्रज्ञ
मानीइ पूजीइ अरचीइ ॥६॥ ॥ इति श्रीशान्तिनाथ-श्लोकः ॥
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(१२) श्रीगुणविजय-विरचित ॥ श्लोकबन्धेन श्रीशद्वेश्वरपार्श्वनाथ-स्तवनम् ॥ ब्रह्मानी धूआ देवी ब्रह्माणी करि गुणग्राम केवलनाणी । सुर नर किन्नर राय वखाणी अपछरा गाइ ऊलट आणी ॥१॥ रायहंस बिठी सुर ठकुराणी वाणी ते बोलइ अमीय समाणी । गाजइ ते गोरी गुणमणि खाणी जागती ज्योति जगमाहि जाणी ॥२॥ पुस्तक पातक-वल्ली-कृपाणी कमल कमंडलनी अहिनाणी । कच्छपी वीणा शोभित पाणी वेद पुराणिं प्रगट गवाणी ॥३|| कासमीर मंडलमा राजधानी धीरज ध्याइ धरी सावधानी । तूसइ ज तेहना दालिद्र कापइ अद्भुत वरु वाणी ज आपइ ॥४॥ जिहां दृष्टि पडी तिहां किणि सार केसर थाइ मणना हजार । विण दृष्टि हुइ कसुबमाल ए वात जाणइ बाल गोपाल ॥५॥
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