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June-2003
ए श्रीदशा[र]णभद्र ऋषिराय - नामई आनंद थाय । इंद्र हराव्यो पाय नमाव्यो गजगति गामी केवलज्ञान-पामी ।
मुगतिं पधार्या मई मनि धार्या ॥२१(२२)।। ॥ इति दशार्णभद्रराजर्षि-श्लोकः ॥
(११) श्रीगुणविजय-विरचित
॥ श्रीशान्तिनाथ-श्लोकः ॥ पुर हत्थिणाउर कुरु देश माहि
इक्खागवंशी पुण्यप्रवाह । श्रीविश्वसेन कुल गौरकिरण
अचिरादेवी वरकूखि ज रयण ॥१॥ सोलमो तित्थंकर संतिनाथ
पांचमो चक्री शिवपुर साथ । मोहन मृगलंछन मनोहार
शिववधू कंठइ नवसर हार ॥२॥ लाख वरसनउं प्रभुतणउं आय
नाम जपंतां नवनिधि थाय । चा(च)रणिं पारेवो जेणि राख्यो
कुंण दयालू ए सम दाख्यो ॥३|| नगरि रतनपुरि जिन जयवंतो
सलखणपुरि प्रभु गुणवंतो । दहीओद्र नगरई देव दीपंतु
महिमाइ हरिहरब्रह्म जीवंतु |४|
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