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अनुसंधान - २४
नयने मुंकइ पणि नवि सूकइ कामिनी रे, पणछ विना ते बाण । नामि अबला पणि सबला तई सांकल्या रे, एणीइं राणोराणि ॥५॥ भो० ॥ आलस अंगिं अनि उत्संगि अंगना रे, किहां तेहनइं जिननाम | आ (अं? )गि खोडा अनि वलि बेडी पग पडी रे, ते पामि किम गाम |६| भो० ॥ नारि निहाली तुझनइ बाली मुंकस्यड़ रे, परतखि अगनिनी झाल । तृपति न पामइ आप दांमइ भामिनी रे, परिणामइ विकराल ||७|| भो० ||
निरखी रूपवतीनइ परतखि पांतर्यो रे, तई न कर्यो सुविचार | रुधिर मांस अंतर मल मूंतर स्युं भरी रे, नारी नरगनुं बार ||८|| भो० || कांने करी नइ केसरि आणइ आंगणइ रे, उपन्नि निज काज । धबकइ धूजइ आई रे झूझइ कूतरा रे, हुं बिहुं अबला आज || ९ || भो० ॥ प्रेमतणउं जे भाजन साजन तेहनइ रे, अणपहुचतइ आस । मुंकइ हाकी अनि वली वांकी बोलती रे, जा रे जा तुं दास ||१०|| भो०||
राय प्रदेशी सूरिकंताइ हण्यो रे, जे जीवन आधार ।
पगस्यउं सायर रयणायर जे ऊतरि रे, पणि एह न पामइ पार || ११ | भो० || जोज्यो निज अंगज हणवानइ कर्यो रे, चुलणीइ बहु मर्म राती माती वनिता ते न विचितवइ रे, करतां काई कुकर्म ॥ १२ ॥ भो० ॥ इंद चंद असुरिंद अनि नागिंदनइ रे, वाह्या वली बलवंत । त्यजिनइ प्राणी एहवी जाणी कामिनी रे, गुण लीजइ गुणवंत || १३ | भो० ॥ माया करस्यइ नारी हरस्यइ भोलवी रे, शील रयण जे सार । एह संघातइ म करिसि वातइ पणि घणउं रे, जिम पामइ जयकार | १४|भो० ||
भाई निरखो सुरपति सरिखो राखीओ रे, छांनोमींनी रूप । सुख ना हुंसी तुम्हनइ मुंसी मुंकस्यइ रे, एह मनोभव भूप || १५ | भो० ॥
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