________________
June-2003
49
थूलभद्रनइ जंबूनइ पगि लागीइ रे, धन्य धनो अणगार । बालपणि पणि जागी वयरागी थया रे, ते मुनि वयरकुमार ||१६||भो०॥ नर नई नारी हृदय विचारी चेतीइ रे, छांडी विषयविकार । मेरुविजय बुध सीस पर्यपइ पामीइ रे, शीलि शिव निरधार ॥
ऋद्धिविजय जयकार ॥१७॥ भो०॥
॥ इति नारीस्वरूप-प्ररूपण-स्वाध्यायः ॥
★★★
(३) सालिग-विरचित-श्रीबलभद्रऋषि-सज्झाय द्वारिका बलती नीकल्या बि बंधव एक ठाय । तृषा उपन्त्री कृष्णनई बलभद्र पाणी पाय ॥१|| तव बलभद्र लाव्यो नीर तुंतो सूतो साहस धीर । पोढ्यो छइ वडतणी छाया कमलाणी कोमल काया ॥२॥ आहेडी जराकुमार खेलि पारधि वनह मझारि । कृष्ण पाए पदम जव दीठउं जाणिउं ए सावज बिठउं ॥३॥ लेई धणुहडी कीधउं प्राण ताकी नइ मेहलिउं बाण । डावि पाइं परम ज लागओ करली नइ कान्हड जाग्यओ ||४|| जोइ जरा रे कुमर तिहां जाइ सारंग ऊठ्यो विललाई । देखी बंधव दुःख अपार कही धिग धिग जराकुमार ॥५॥ मई पापीई बंधव हणीओ तव माहवइ एणि परि भणीओ । हवइ जा तुं वार म लावइ बलभद्र जिहां लगि नावइ ॥६॥ माहरु कटक देजे नींसाणी इंम कहिजे युधिष्ठिर वाणी । वल्यो जराकुमर ततकाल कृष्णनइ तव पहुचु काल ||७||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org