Book Title: Vividh Kavi Virachit Sazzaya Shlokadi Sangraha
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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June-2003
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एहज त्रिपुरा तोतला बाली एहज काजी(ली) ए महाकाली । एहज कालागिणि हरसिद्धि एहज अंबा ए सिद्धि बुद्धि ॥६॥ सोपारा-पाटण माहिं मंडाण अज्झारी गामि वली अहिगण । रंगि ज रही त्रिभुवन्नि व्यापी भगतनई भावि भल बुद्धि आपइ ॥७।। एहज माता धरीय उल्लास मुझ मुखकमलिं करु निवास । हुँ गाउं प्रेमिं पासकुमार श्रीआससेन कुलसिणगार ॥८॥ सघला ते मंडलमां सिरताज अधिकी ज गूजर खंडनी काज । तेह माहि वारु. वढीआर सोहइ मोहन मानवनां मन मोहइ ।।९।। नगर संखेसर निरमल नूर प्रगट्यउं ज पुहवि पुण्यि पडूर । जिनहर मंदिर अति सुविसाल बावन्न देहरी झाकझमाल ॥१०॥ पासजी बइठा संकट चूरइ प्रगटप्रभावि परता ज पूरइ । यादव दलनी जरा निवारी सबल समहुतु कीध मुरारी ॥११॥ नमि विनमीइं एहज आराध्यो साजण सेठ एथी ज वाध्यो । रवि शशि सोहम नई धरणिंद सेवइ विशेषई पासजिणिद ॥१२॥ को छत्रीआली चड्या चोसाल घम घम धमकइ घूघरमाल । जोतर्या धोरी तुरंगमताजी रेवत रविना जाइ ज लाजी ॥१३॥ को चडी आवइ जन चकडोल पालखी बइठा करइ कलोल । गजरथ घोडा फोज बनाई सार सुखासण सबल सजाई ॥१४॥ भेरी नफेरी नींसाण वाजइ नादि करी नइ अंबर गाजइ । वीणा तंबूरो ताल मृदंग गंधर्व गाइ हुइ उछरंग ॥१४॥ तंबू विराजइ तिहां पंच वरणी सहुइ प्रसंसइ ए भली करणी । थानक थानकना बहु संघ इंम आडंबरइ आवि उतंग ॥१५॥ वर्ण अढारइं लाभइ न पार सहु भरइ पूजी पुण्य भंडार । माणस हेजम कुंण करइ मान सहज सुरंगा द(दे) घण दान ॥१६॥
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