Book Title: Vividh Kavi Virachit Sazzaya Shlokadi Sangraha
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 30
________________ 70 के करइ जासक जम्मणवार अन्न अवारी मन्न उदार । जम्माडी आपइ तंबोल ताजा निति निति एहवा नवल दवाजा ||१७|| को झाझो आणी अगर उखेवइ को वली देहरुं ज भरइ मेवइ । को वानी वानीनां फल ढोइ पातग पोतानां पणि धोइ ॥ १८॥ लाखीणी पूजा कोइ करावइ फूलनो कोइ पगर भरावइ । चंपकलीनो हार पहिरावइ अंगद बांहि कोइ बनावइ ||१९|| अनुसंधान-२४ चंग चंदुओ कोइ चडावर कोइक बाजू-बंध घडावइ । हीरानइ चुंनीमाहिं जडावइ मस्तकि कोई मुगट सुहावइ ॥२०॥ केसर सूकडिना रंगरोल कपूरमाहिं छाकमछोल । दीप झलामलि जाणे दीवाली निसदिन मइ ते नयनि निहाली ||२१|| खेला ते खेलइ छयल छबीला फूटरा रूडा रूपरंगीला । पात्र प्रपंच निरूपम नाच राग आलापइ रंगि ज राचइ ||२२|| एक संघ आवइ एक सिधारइ पंन्यास वाचक सूरि पधारइ । तिल पडवानो नहीं पणि माग पासजी ऊपरि अति घण राग ॥ २३ ॥ सुंदरि सारइ सवि सिणगार कंठि ज ठवइ नवसर हार । वेणी ते सोहइ जिम शेषनाग देखी ते खोभइ जेह नीराग ॥२४॥ नाकइ ते लटकइ छइ नाकफूली मूल न थाइ अति बहुमूली । झब झब काने झबकइ झालि आवी नइ अडकइ गोरइ गालि ||१५|| राखडी राती लाल गुलाल अष्टमी समी सुंदर भाल । अलवि ते बहू आंखडी अंजइ वेधक रसियां मन रंजइ ||२६|| दाडिमकली दंतनो वृंद जीह ते जाणे अमीयनो कंद । अधर ज ओपइ विद्रुम रंग युव मधुकरनो जिहां किणि बंग ॥२७॥ पीन पयोधर कंचन कुंभ सदली ते साथलि कदली ज थंभ | कडि अति झींणी मुंठि ज माइ केसरी हार्यो वनमाहि जाइ ||२८|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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