Book Title: Vividh Kavi Virachit Sazzaya Shlokadi Sangraha
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
72
अनुसंधान-२४
पहिलि पदि जपीइ अरिहंत बीजि सिद्ध भजो भगवंत । त्रीजि नमो पवयण संधारि चोथि आयरियाणं सार ||२|| पंचम पदि थेराणं सुणो छठि उवझायाणं गणो । निपुण नमो लोए[साहूणं] सातमि जपो नमो नाणस आठमि ॥३॥ नमो दंसणस मुंमि धन्न दसमि नमो विनय संपन्न । इग्यारमइ नमो चारित्त बंभव्वय बारमि सुपत्त ॥४॥ किरियाणं तेरसमि जाणि नमो तवस्स चउदमि ठाणि । गणो नमो गोयम पनरमि नमो जिणाणं जपो सोलमि ||५|| गणि चारित्त नमो सतरमि नाणस्सय पद अट्ठारमि । नमो सुयस्स य ओगणीसमि तिम तित्थस्स नमो वीसमि ।।६।। एक(एम) वीसइ थांनकनां नाम जिनपद वशीकरण अभिराम । श्रीगुरु कनकविजयबुधसीस कहि गुणविजय जपो निसदिस ||७||
॥ वीस थानिक नाम सझाय ॥
★★★
(१४) श्रीगुणविजयविरचित ॥ श्रावकना पांत्रीस गुणनी सज्झाय ॥
सरसति चरणि नमाडी सीस पभणउं श्रावक गुण पांत्रीस । 'न्याय सहित संपति घरि भरइ शिष्टाचार प्रशंसा करइ ॥१॥
सरिखि धरमि वसि वीवाह करि धरी निज मन उच्छाह । "पाप थकी बीहइ निज हदइ 'अयशवाद नवि कहिनो वदइ ॥२॥ 'जे जे जिणि जिणि देशि उदार करि सदा ते ते आचार । रूडा पडोसी नइ पासि 'भलि ठामि जस घरनो वास ॥३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38