Book Title: Vividh Kavi Virachit Sazzaya Shlokadi Sangraha
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 31
________________ June-2003 71 सखर सोनारिं घड्यो ज रूडो हाथइ ते दीपइ कनकनो चूडो । कंकण जमली सार कारेली बइसती वीटी पासइ ज बेली ॥२९॥ कटि कटिमेखल खल खल खलकइ चोखी ज चुंनी तेजई ते सकलइ । चरणे ते झांझर झमझमकार वींछीयडानो ठमठमकार ॥३०॥ पहिर्यउं ते नारी कुंजर चीर चोली चरणा जिहां मस्तूल हीर । घाटडी कोमल कलगयकेरी फूलनी हाथिं चंग चंगेरी ॥३१॥ पातली जाणे चंपक छोड चमकती चालइ मोडा ज मोड । सांमटी सरखी सहीयर टोली भाव भलेरो भांभर भोली ॥३२॥ केसर चंदन घन घसी घोली सुभर भरी ते कनक कचोली । पासजी पूजइ मनि धरी प्रेम द्रुपदी पूज्या जिनवर जेम ॥३३।। पास संखेसर परम दयाल वामा उअर सर राजमराल । राणी प्रभावतीनो भरतार गुणविजय गाइ गुण वारोवार ॥३४|| एवं ए श्रीसंखेसर पार्श्वनाथ अनाथनो नाथ मोक्षमार्गनो निर्भय साथ । अनि ए छंडी अवर देवनि आराधि ते लि (दिए?) वाओलि बाथ । एहवउं जाणी भव्य प्राणी भाव धरी भगवंतनई मनमाहिं धरीइ । सहजइ दुःखमा दुःख समुद्र तरीइ निश्चय केवल श्री वरीइ ॥३५॥ ॥ इति श्लोकबन्धेन श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथ-स्तवनम् ॥ श्रीपत्तननगरे॥ ★★★ (१३) श्री गुणविजयविरचित ॥ श्रीवीशस्थानक-नाम-स्वाध्याय ॥ सुगुरु नमी सुररयण समान थानक वीस तणां अभिधान । पभणउं अति ऊलट मन धरि सुणयो भवियण भावि करी ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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