Book Title: Vividh Kavi Virachit Sazzaya Shlokadi Sangraha
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
66
करु विकूर्वण वंदन काजि वांदस्यउं चउवीसमो जिनराज आदेश पाम्यइ आव्यो ज हरिस हाथी विकूर्व्या चउसठि सहस || १०(११) ॥ एकेका कुंजरनइ शिर सार पांचसई ऊपरि अधिकां ज बार । शिर दीठ दंतूसल आठ आठ ए सही साचो आगम पाठ || ११ (१२)।
अनुसंधान-२४
आठ आठ वावि दंत ज दीठ पेखीज विस्मय मनमां पईठ । वावि ज वावि आठ आठ कमल लाख लाख पांखडी तिहां विमल ॥१२(१३)।
लाख पांखडीई नाटक लाख देव देवीनी मधुरी ज भाष ॥ डोडो ज मध्यई एक प्रासाद अठ अग्रमहिषी इंद्र आह्लाद || १३ (१४) | जव प्रति कमलई बइठो ज आवइ जम्मक सम्मक नाटक थावइ । श्रीसीहलंछन सुरगिरिधीर इंद्रइ आवीनइ वांद्या ते वीर || १४ (१५) ॥ ऋद्धि तगादो देखी नवेरो मान गली गयो नृप केरो ।
हुं जो एहनइ पाय नवांडउं भल्लो पोतानो मान भवाडउं ॥ १५ (१६)॥
इंम विमासी महावीर पासइ संयम लीधउं राई उल्लासइ | इंद्र कहि मई हवि न चालइ तुं विण कुंण ए भार झालइ || १६(१७)||
महावीर पासिं चारित्र लीधरं माहंत तरं बोल्यउं तिम कीधउं । शक्ति घणी छइ मुझ नइ अनेरी करणी न थाइ पणि तुझ केरी || १७ (१८) । इंम प्रसंसी वांदी समहुतो आपणइ ठामइ इंद्र पहूतो ।
श्रीराजऋषिनो वाध्यो ज वान अनुक्रमइ पाम्या केवलज्ञान ॥ १८ (१९) || भविजन तारी भवदुख वारी मुगतिं पधार्या मुनि जयकारी । कहि गुणविजय कवि मन कोडि वली वली वांदुं हुं कर जोडी || १९ (२०)॥
शालिभद्र सम कुंण भोगतारी थूलभद्र सम कुंण ब्रह्मचारी | शांति जिणेसर सम कुंण दानी दशारणभद्र सम कुंण मानी ॥ २० (२१) ||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38