Book Title: Vividh Kavi Virachit Sazzaya Shlokadi Sangraha
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसंधान-२४ बलभद्र जल लेई आवीओ बंधव सूतो देखि । किम ऊठाडउं नींद भरि इंम चितवइ विशेष ॥८॥ मोरो बंधवह जीअ न जागइ बोलावइ मधुरि सादई । नवि बोलइ सारंगपाणी वात ए हईडइ न समाणी ॥९॥ तव मुख ऊघाडी जोइ साद करीनई सरलइ रोइ । रीसाव्यो किंणि गुणि भाई बांधव बांधव विललाई ॥१०॥ पगि लाग्यो दीठो घाय केणि सूर हण्यओ वनमाहिं । बांहि धरी तव बिठो कीधु उपाडी खांधि लीधु ॥११॥ लेई चाल्यो वनह मझारि मुझ सालइ दुःख अपार । हुं वेगि नीर न लाव्यो तेणि तुं खरु रीसाव्यो ॥१२॥ हवि बोलि मया करि मोरी किहां चाकरी चूकुं तोरी । इंम मोहनी नइ वशि चडीओ इमास(?)इंणी परि नडीओ ।।१३।। देवता उपाय करावई शिला उपरि कमलिणी वावइ । पाथरि केम ऊगइ सार पोइणि तुं खरु गमार ॥१४॥ जो मूओ बोलस्यइ भाई तो कमलिणि ऊगस्यइ लाई । चाल्यो सुणी बलभद्र वाणी तिहां वेलू पीलइ घाणी ॥१५॥ तुं तो मूरख जोइ विमासी वेलू ए किम पीलासी । सुणि मूउं मडउं जो जीवइ तो तेल बलइ इंणि दीवइ ।।१५।। समझाव्यो तडकी बोलइ बलभद्र पड्यो डमडोलइ । जव विणसण लागी काया तव छोडी बलभद्र माया ॥१६।। मनि जाणी सोइ विचार तिहां कीधुं तेह प्रकार । जूओ कर्म तणी गति जाणी नवि छूटो सारंगपाणी ॥१८॥ बलभद्र चालिओ तिणइ ठाहि वयराग धरी मनमाहि । जइ वंदइ नेमिकुमार तिहां लीधु संयमभार ॥१९॥
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