Book Title: Vividh Kavi Virachit Sazzaya Shlokadi Sangraha
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
54
अनुसंधान - २४
पुहवि कीजइ पर उपगार, साधुहंस कहइ तरीइ संसार । एह वयण मनमां आणस्यइ, ते सास्वतां सुख पामस्य ||१२||
।। इति हितशिक्षाबोल - सज्झाय ॥
( ६ ) हेमविजय विरचित
समता-सज्झाय
सहि गुरुचरण नमी करीजी समरी सरसति माय । समतारस - सर हंसलाजी बंदी तिम ऋषिराय ॥१॥ सोभागी करी समता स्युं रंग । जो तुझनइ कीधओ रुचइजी मुगतिवधूनओ संग ॥२॥ सोभागी० ॥ परिहरि निंदा पारकीजी म करिसि निज गुण ख्याति । इणि परि गिरुयडि पामीइजी एहवी वात विख्यात ||३|| सो०॥
निज गुण निज मुख जे लवइ जी निभ परनिंदा ढाल । तस तप जप संयम मुधाजी बोलि उपदेशमाल ||४|| सो० | नवि लीजइ अछता छताजी पर अवगुण लव लेस ।
तां जस नवि पामीइजी तेहस्युं वयर निवेस ||५|| सो० ॥ मासखमणनइ पारणिजी एक सीथ लइ आहार । करतो निंदा नवि त्यजिजी तस दुरगति निरधार ||६|| सो०॥ जो दीठा जो सांभल्याजी त्यजि पर अवगुण जाण । पर अवगुण लेतां हुइजी निज गुण केरी हाणि ॥७॥ सो० ॥ पुंठिमांस नवि खाईइजी ए दुरगतिनुं बार । दशवैकालिकमाहिं कहीजी शय्यंभव गणधार ॥८॥ सो० ॥
जो जस जोईइ निरमलोजी परिहरि निंदा ढाल । निंदकनइ सहुइ कहिजी ए चोथो चंडाल ||९|| सो०||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38