Book Title: Vividh Kavi Virachit Sazzaya Shlokadi Sangraha Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ 42 ११. १२. १३. १४. १५. श्रीशान्तिनाथ श्लोक, शंखेश्वरपार्श्वनाथ श्लोक, श्रीवीशस्थानकनाम - स्वाध्याय तथा श्रावकना पांत्रीस गुणनी सज्झाय-एम पांचे कृतिना कर्ता पंडित श्रीकनकविजयजीना शिष्य श्रीगुणविजयजी छे. 'श्लोक' एटले 'सलोको'. श्री सिद्धस्वरूप स्वाध्यायना कर्ता, सज्झायनी अंतिम कडीमां निर्दिष्ट सकल योगीसरो शब्दथी, श्रीसकलचंद्रजी उपाध्याय जणाय छे. अनुसंधान - २४ आ प्रति मारा पू. गुरुभगवंतना संग्रहमांथी प्राप्त थई छे. प्रतिमां लेखन संवत् नो निर्देश नथी कर्यो, परंतु लखावट जोतां प्रायः १८ सैकामां लखाई होय तेवुं जणाय छे अक्षरो सुंदर छे, तेम ज लखाण स्वच्छ अने शुद्ध छे. विशेषता श्रीशान्तिनाथ भगवानना श्लोकमां रतनपुर, सलखणपुर (सलक्षणपुर) तथा दहीओद्र ( दधिपद्र) नगरनो निर्देश छे. श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथना श्लोकमां सरस्वती देवीनी स्तवना करतां कविए देवीने त्रिपुरा, तोतला, बाली, काली, महाकाली, कालाग्नि, हरसिद्धि, अंबा, सिद्धि, बुद्धि कही छे अने देवीना स्थान सोपारापाटण तथा अज्झारी गाम कह्यां छे. ( १ ) श्रीलब्धिविजयकवि- -कृत खिमा पंचावन्नी (राग - धन्यांसी - मिश्र सींधुओ) Jain Education International श्रीगुरुचरणे नमी करि करि खमयानुं खेडुं रे । तिम खमया खडगइ करी हणजे अरियण पेडुं रे ॥१॥ उपशमरसवसि मन करूं उपशमथी सुख होवइ रे । उपशमरसि मन धोतीउं जोगीसर नित धोवइ रे || २ || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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