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लीधरो रे लाल, ते नपजे देवलोक सु॥न ॥ १७ ॥ घृत अनिषेक जिणंदने रे लाल, जेह ITalकरे धरि राग सु॥ते सुर सुरनि शरीरनो रे लाल, थाये वर महानाग सु॥न ॥ २०॥ अति | alपवित्र वस्त्रं करी रे लाल, मृदु सुगंध सावधान सु ॥ जल लूहि जिनविंबर्नु रे लाल. आपे परमनिधान सु॥न ॥१॥ केसर श्रीखंमें करी रे लाल, माहे मेली घन सार सु०॥ जिनवरने नाले करे रे लाल, प्रथम तिलक श्रीकार सु॥न ॥ २२ ॥ पगे ढींचग कर बे खन्ना रे लाल, मस्तक नाल सुरंग सु॥ कंठे हृदय नदेर तले रे लाल, कीजें तिलक नवअंग सु॥न ॥२३॥ नवे अंग पूजा करी रे लाल, पी विलेपि अंग सु ॥ कुसुम सुगंधी मल्लिका रे लाल, टोमर
कुसुम सुरंग सु॥ न ॥ ३२ ॥ एक फूले न करे धिा रे लाल, कलिका न दे कोय सु॥sa salपंकज पत्र बे नेदथी रे लाल, हत्या पातक होय सु० ॥ न० ॥ २५ ॥ पुष्य पमयुं निज हाथथी
रे लाल, नूमि लागुं अथ पाय सु॥ निज मस्तक नलपर रह्यं रे लाल, तीण पूजा नवि थाय Sal Salसु ॥ न॥ २६॥ नीच जने फरस्यां दुवे रे लाल, कीटक वींध्यां जोय सुण ॥ मलिन वस्त्रे
धरयां हुवे रे लाल, तीण पूजा नवि होय सुण ॥ न ॥ २७ ॥ तेह कुसुम न चढाववां रे लाल. अगर धूप सुपवित्र सु ॥ जिनवर हाथें मूकीयें रे लाल, फल अहिवेली पत्र सु॥ न ॥॥ केशर चंदन प्रहसमे रे लाल, कुसुम तणी मध्यान सु० ॥ धूपं दीप संध्या समे रे लाल, पूजा त्रिकाल प्रधान सु ॥ न ॥ ए ॥ सर्वगाथा ॥ ७ ॥
दोहा॥ अदत नज्वल तंदुले, रचें अष्ट मंगलीक, दर्पण मुख प्रन्नु आगलें, मंगल मले नजिक ॥१॥ यतः ॥ दर्पण नदासण वधमाण सिरिवछ म वरकलसा ॥ सश्यिय नंदावतो, लिहिया अठछ|
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