Book Title: Vissthanakno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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salजिनवरदेव जुहारीनं, करी पंचांग प्रणाम, बेसे गुरु वंदी करी, टाले आशातना ताम ॥२॥पाल
गठी बांधे नही, लांबा न करे पाय, पग नपर पग नवि धरे, निकट न बेसे आय ॥ ३ ॥ दृष्टि न्यसी गरु सनमखें. चित्त करीक गम, धर्म शास्त्र श्रवणे सणे. नवसते परिणाम यथा शक्ति नगरी करी, गुरुने मुख पचख्खाण ॥ विरति करे आरंननी, पाले श्रीजिनआग ॥५॥
__ ढाल त्रीजी ___ अलबेलानी देशी ॥विरति विना दाता नरा रे लाल, तिर्यंच योनि लहंत सुविचारी रे, हस्त्यादिक थई सुख लहे रे लाल, बंधण माहे रहंत सुविचारी रे ॥ १॥ नक्ति करो नगवंतनी रे लाल, पालो शुआचार ॥ सु॥ नीत करणी किरिया करो रे लाल, राखो शुइ व्यवहार सु॥ ॥२॥ विरति तिर्यंच नवि दुवे रे लाल, दाता नरक न जाय सु० ॥ जीवतणी राखे दया रे लाल ॥ दीण न पामे आय सु०॥न ॥३॥ न करे न करावे कदा रे लाल, नीचहीरा व्यापार सु॥ पुण्यानु-IN सारिणी पापथी रे लाल, लछि वधे न किवार सु॥न॥४॥ तेली कसा कलालशं रे लाल, चर्मकार लोहार सु॥ अर्थागम थाये घणो रे लाल, तोहि न करे व्यापार सु ॥ न ॥५॥sa श्रावक श्रध्धावंत जे रे लाल, इणि परें करे व्यवहार सु॥ साचे मारग अनुसरे रे लाल, कू, कपट परिहार सणान॥६॥ देहरासर थापे घरे रेखाल. शल्य रहितनं देख सवामभाग सौधेयथी रेलाल,शुन्न दिवसेंसुविशेष सु॥नणा॥ सार्ध्व हस्त ऊंचो करे रे लाल, नूमिथकी निर्धार सु ilपूर्वोत्तर दिशि सन्मुखे रे लाल, दक्षिण विदिशि निवार सुवाना॥धन प्राप्ति पूरवदिशि रेलाल,अगपनि खूण संताप सुणामृत्यु लहे दक्षिण दिशेरेलाल, नैऋतें नपश्व व्याप सु०॥ ॥९॥पुत्र मरण
पच्छिम दिशे रे लाल, वायव्ये संतति नाश सुणालान्न घणो नत्तरदिशेरे लाल, ईशाने धर्मवास सु॥
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