Book Title: Vissthanakno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ वीशवर तणी, कीजें कोशनी वृद्धि हो सुंदर ॥ श्री०॥१०॥ए एकवीश प्रकारनी, पूजा प्रनुनी जाण-II स्थान हो सुंदर ॥ सुरपति सुरगणशुं करे, नाव नक्ति हित आग हो सुंदर ॥ श्री० ॥११॥ जे वल्लन ॥शा आपण नणी, पाये वस्तु सुत्नेव हो सुंदर ॥ते प्रनु आगल जोमीयें, पूजाविधि सुणो देव हो सुंदर ॥ श्री॥१२॥शयन वस्त्र मूकी करी, पहेरी वस्त्र पवित्र हो सुंदर, पूर्वदिशि बेसी करी, जपे । परमेष्टी मंत्र हो सुंदर ॥ श्री० ॥ १३ ॥ अपवित्र अथवा पवित्रपणे, सुस्थित कुस्थित वास हो salसुंदर ॥ जाप करे नवकारनो, थाये पापनो नाश हो सुंदर ॥ श्री० ॥ १४ ॥ अंगुलअग्रे जे जप्यो, ISA मेरु लंधी करे जाय हो सुंदर ॥ जेह जपे संख्या विना, निष्फल जाप सुथाप हो सुंदर॥श्रीण॥१५॥ salमुनिवर थानक जश् करी, अथवा पोताने गम हो सुंदर ॥ निज पातक धोवा नणी, करे आवश्यक sal ताम हो सुंदर श्री॥१६॥एक राईबीजो देवेसी, पाखी चनमासी चार हो सुंदर ॥ संवैचरी जिनवर कह्यां, पंचावश्यक सार हो सुंदर ॥ श्री॥१७॥आवश्यक विधिसुं करी, जाये (जनवर गेह हो सुंदर ॥ तीन वार निसिही कहे, देखी जिनवर देह हो सुंदर ॥ श्री ॥१७॥ द्र तजे आशातना, निश Ra हास्य विलास हो सुंदर । थुक कलह विकथा तजे, न करे नोजन वास हो सुंदर ॥ श्री ॥१॥ नमस्कार जिननें करी, फल अक्षत लेश नूर हो सुंदर, ढोवे श्रीजिन आगलें, पामे सुख नरपूर हो सुंदर॥श्री०॥३०॥ तीन पूंज जिन आगलें, थापे पुण्य पवित्र होसुंदर ॥शशी जेम सुधि करवा नणी, ज्ञान दर्शन चारित्र हो सुंदर॥श्री० ॥१॥ दक्षिण नर वामें स्त्रीया, ढींचण नूमि लगाय हो सुंदर, चैत्यवंदन प्रनु आगलें, करे जिनहर्ष सुन्नाय हो सुंदर ॥ श्री०॥५॥ सर्वगाथा॥५॥ ॥शा ॥दोहा॥ श्रीजिनवरथी वेगली, हाथ षष्ठि रहे दार, नव कर जघन्य रहे वेगलो, एह अवग्रह धार ॥१॥ Jain Educatrona international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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