Book Title: Vishwashanti aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 4
________________ पुरोवाक विचार, आचार और संस्कार ये तीन जीवन-निर्माण के मूल तत्त्व हैं। अनेकान्त से सम्पुटित सापेक्ष विचार समस्या को सुलझाता है, कहीं भी उलझन पैदा नहीं करता। अहिंसा और अपरिग्रह से अभिषिक्त आचार हिंसा और परिग्रह से अभिशप्त युग में संजीवनी का काम करता है। सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र के संस्कार का पल्लवन हो, यह. वर्तमान युग की अपेक्षा है। दिल्ली-यात्रा और वहां का दीर्घकालीन प्रवास निमित्त बना; कल्पना हुई कि सम्यग् विचार, आचार और संस्कार की बात जनता तक पहुंचे और वह उससे लाभान्वित हो। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए लघु पुस्तिकाओं की एक श्रृंखला की योजना बनाई गई। __ आज का आदमी बहुत व्यस्त है। समय की अल्पता नहीं है फिर भी व्यस्तता की धारणा बनी हुई है, इसलिए वह बहुत बड़ा ग्रन्थ पढ़ने से कतराता है। इस लघु पुस्तिका में जितना दिया जा सकता है वह इसमें पर्याप्त है। जैन शासन को समझने के लिए अहिंसा को समझना जरूरी है। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञान उसके विकास-सोपान हैं। उन पर आरोहरण कर पाठक स्वयं धन्यता का अनुभव करेंगे। अणुव्रत अनुशास्ता तुलसी आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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