Book Title: Vishwalochana Kosha
Author(s): Nandlal Sharma
Publisher: Balkrishna Ramchandra Gahenakr
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विश्वलोचनकोशः- [रान्तवर्गेसंबरं सलिले बौद्धव्रतभेदे घनेऽपि च । संबरी त्वौषधीभेदे सामुद्रं त्वङ्गलक्षणे ॥ २३५ ॥ सामुद्रं स्यात्समुद्रीयलवणादिषु वाच्यवत् । सावित्री देवताभेदे सावित्रः पार्वतीपतौ ॥ २३६ ।। सिन्दूरस्तरुभेदे ना सिन्दूरं रक्तवालुके। सिन्दूरमपि सिन्दूरयुक्तलेखे महीभृताम् ॥ २३७ ॥ सिन्दूरी धातकीरक्तचेलिकारोचनीष्वपि ।। सुन्दरी नायिकाभेदे तरुभेदेऽपि सुन्दरी ॥ २३८ ॥ सुनारस्तु शुनीस्तन्ये सर्पाण्डकलविङ्कयोः। सैरिन्ध्री परवेश्मस्थशिल्पकृत्स्ववशस्त्रियाम् ॥ २३९ ।। वर्णसङ्करजायादौ वधाद्यां च महल्लके । सौवीरं काञ्जिके स्रोतोञ्जने बदरदेशयोः ॥ २४० ।। संस्कारः पुंस्यनुभवे सङ्कल्पप्रतियत्नयोः ।
संस्तरः प्रस्तरे पुंसि पुंसि यज्ञेपि संस्तरः ।। २४१ ॥ संबर-जल, बौद्धव्रतभेद, घन (न०) सिंदूरी-धायके पुष्प, रक्तचोलीवाली संबरी-औषधीभेद (स्त्री०)
स्त्री, गोरोचन (स्त्री०) समुद्र-अंगोंका शुभाशुभ लक्षण | सुंदरी-नायिकाभेद, वृक्षभेद, (स्त्री०) (न०) ॥ २३५ ॥
| ॥ २३८ ॥ सामुद्र-समुद्रमें होनेवाला लवण सुनार-कुत्तीका दूध, सर्पिणीका अंडा,
चिडा-पक्षी (पुं०) (नमक) आदि ( त्रि०)
सैरिन्ध्री-दूसरेके घर में स्थितहई सावित्री-देवताभेद, (स्त्री० )
भी स्त्री अपने वश रहकर शिल्पसावित्र-पार्वतीपति ( महादेव )| करनेवाली ( स्त्री० )॥ २३९ ॥ (पुं० ) ॥ २३६ ॥
सौवीर-कॉजी, सीसा, बेर, सौवीरसिन्दूर-वृक्षभेद (पुं०)
देश ( न० पुं०) ॥ २४० ॥ सिंदूर-रक्तवालुक (सिंदूर ), राजा- संस्कार-अनुभव,संकल्प,जतन(पुं०)
ओंका सिंदूरयुक्त लेख (न०) २३७ । संस्तर-पत्थर, यज्ञ (पुं०) ॥२४१॥
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