Book Title: Vishwalochana Kosha
Author(s): Nandlal Sharma
Publisher: Balkrishna Ramchandra Gahenakr
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३८९
सतृतीयम् ।] भाषाटीकासमेतः ।
धनुर्धनुर्धरेऽपि स्याद्धनुरर्जुनभूरुहे । नभो व्योम्नि नभो मेघे बिससूत्रे पतद्हे ॥ २५॥ वर्षासु श्रावणे घ्राणे नभाः पलितमस्तके । पनसः कण्टकिफले कण्टके कपिरुग्भिदोः ॥ २६ ॥ दुग्धे नीरे बटादीनां क्षीरेऽपि क्षीरवत्पयः । श्रीवासे पायसः पुंसि परमान्ने तु पायसम् ॥ २७ ॥ पुष्कसी कालिकानील्योः पुष्कसः श्वपचेऽधमे । प्रहासः स्यान्नटवटौ हास्यतीर्थविशेषयोः ॥ २८ ॥ पुनरर्थेऽव्ययं भूयो भूयांस्तु बहुषु त्रिषु । मनश्चित्ते मनीषायां महस्तूत्सवतेजसोः ॥ २९ ॥ मानसं वान्तसरसो रजः स्यादातवे गुणे । रजः परागे रेणौ तु रजवदृश्यते रजः ॥ ३० ॥
धनुषको धारण करनेवाला (त्रि.)। पुष्कसी-कालिका, नील-वृक्ष(स्त्री०)
अर्जुन ( कोह ) वृक्ष (पुं० ) पुष्कस-चांडाल, नीच (पुं० ) नभस्-आकाश, मेघ, कमलभैंसीडा- प्रहास-नटका लड़का, ठट्ठासे हँसना,
का तंतु, पीकदान ( न० )॥२५॥ तीर्थविशेष (पुं०)॥ २८ ॥ वर्षा-ऋतु, श्रावण मास, नासिका, भूयस्-पुनः ( दूसरीबार) (अ० )
बुढापेसे सफेद मस्तकवाला (पुं०) भूयस्-बहुत (त्रि.) पनस्-फनस-वृक्ष, कॉटा, वानरभेद, मनस्-चित्त, बुद्धि, (न.) __ रोगभेद, ( पुं० ) ॥ २६ ॥ महस-उत्सव, तेज (न. ) ॥२९॥ पयस्(पय)-दृध, जल, बडआदि मानस-मन, एक सरोवर, (न.) वृक्षोंका दूध, ( न०)
रजस्-स्त्रीका आर्तव, गुण, पुष्पधूलि पायस-देवदारुकी धूप, (पुं० )क्षी- (न०)
रान्न ( खीर ) (न. ) ॥ २७ ॥ रजस(रज)-धूलिमात्र (न० ) ३०
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