Book Title: Vishwalochana Kosha
Author(s): Nandlal Sharma
Publisher: Balkrishna Ramchandra Gahenakr

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Page 416
________________ विश्वलोचनकोश: क्षैकम् | राक्षसे क्षेत्रमात्रेऽपि क्षकारः परिकीर्तितः । क्षद्वितीयम् । अक्षस्तु पाशके चक्रे शकटे च बिभीतके ॥ १ ॥ आचारे व्यवहारे च चुल्लावात्मज्ञकर्षयोः । अक्षं स्यादिन्द्रिये क्लीबं तुत्थे सौवर्चलेऽपिच ॥ २ ॥ ऋक्षस्तु पुंसि भल्लूके शोणफे कृतवेधने । ऋषिभेदेऽद्विभेदे च तारायामृक्षमस्त्रियाम् ॥ ३ ॥ कक्षः सैरिभदोर्मूलकच्छे शुष्कवने तृणे । गुल्मिन्यामपि कक्षा तु गृहे काञ्चीप्रकोष्ठयोः ॥ ४ ॥ परिधाने परीधाने पश्चादश्चलपल्लवे । स्पर्द्धाद्वारवरत्रासु गजरज्जौ रथांशके ॥ ५ ॥ रौक्षं गीते त्वन्यवत् स्यात्तीक्ष्णे शुचिमनोज्ञयोः । दक्षो मुनौ हरवृत्रे कुक्कुटेऽग्नौ च धातरि ॥ ६॥ दक्षः स्याद्दक्षिणभुजे प्रगल्भेनलसे त्रिषु । ४०२ क्षैक । क्ष - राक्षस, क्षेत्रमात्र, (पुं० ) क्षद्वितीय | अक्ष- पासा, चक्र, गाडी, बहेडा, ॥ १ ॥ आचार, व्यवहार, चूल्हा, : ब्रह्मज्ञानी, २ तोले परिमाण, (पुं०) अक्ष- इन्द्रिय, नीलाथोथा, काला नमक, ( न० ) ॥ २ ॥ ऋक्ष- रीछ, सोनापाठा-औषधि, तोरई या कहै छिद्र जिसमें वह, ऋषिभेद, पर्वतभेद, ( पुं० ) तारा ( न० ) ॥ ३ ॥ -- [ क्षान्तवर्गे | कक्ष - भैंसा, भुजाका मूल (काख ), तून-वृक्ष, सूखा वन, तृण, (पुं०) कक्षा- ड्योढी, घर, करधनी, ओटा या चौखट, ॥ ४ ॥ डुपट्टा, दुपट्टेका पिछला पल्ला, स्पर्द्धा ( ईषी), डकारलेना, चर्मरज्जु, हस्तीकी रज्, रथका भाग ( स्त्री० ) ॥ ५ ॥ रौक्ष-गाना, तीक्ष्ण, पवित्र, सुंदर ( त्रि० ) "Aho Shrutgyanam" दक्ष-मुनि, शिवका वृषभ, मुर्गा, अग्नि, ब्रह्मा ॥ ६ ॥ दहिनी भुजा, (पुं०) प्रगल्भ ( चतुर ), सावधान (त्रि ० )

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