Book Title: Vishwalochana Kosha
Author(s): Nandlal Sharma
Publisher: Balkrishna Ramchandra Gahenakr

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Page 406
________________ ३९२ विश्वलोचनकोशः- [ सान्तवर्गेसङ्केपेऽपि समासः स्यात्समासः स्यात्समर्थने । द्वन्द्वादौ च समासाख्या सरस्तोयतडागयोः ॥ ४३ ॥ सहो ज्योतिष्मति बले सहा हेमन्तमार्गयोः । सारसं पङ्कजे क्लीबं सारसः पक्षिचन्द्रयोः ॥ ४४ ॥ साहसं तु बलात्कारकरणे साहसं मदे । सुरसौषधिभेदेऽपि हविस्तु घृतहव्ययोः ॥ ४५ ॥ सचतुर्थम् । अगौकाश्च नगौकाश्च शरभे सिंहपक्षिणोः । अधिवासस्तु वसतौ संस्कारे धूपनादिभिः ॥ ४६॥ अवध्वंसस्तु निंदायां परित्यागावचूर्णयोः । उदर्चिः पुंसि दहने उदर्चिस्तूत्प्रभे त्रिषु ॥ ४७ ।। कनीयाननुजेऽत्यल्पे त्रिषु स्यादतियूनि वा । कलहंसस्तु कादम्बे राजहंसे नृपोत्तमे ॥ ४८॥ समास-संक्षेप, समर्थन करना, द्वन्द्व सचतुर्थ । आदि-समास (पुं० ) अगौकस् नगौकस-साबर, सिंह, सरस्-जल, तालाव ( न० )॥४३॥ पक्षी (पुं०) | अधिवास्-बसना, धूप देना आदिसे सहस्-ज्योति, अतिबल, ( न०) । ___ संस्कार (पुं०)॥ ४६ ॥ सहस्-हेमन्त ऋतु, मागेशिर-मास अवध्वंस-निंदा, परित्याग, चूर्ण (पुं०) ___ करना (पुं०) सारस-कमल ( न०) उदर्चिस्-अग्नि (पुं०) सारस-सारस-पक्षी, चंद्रमा ( पुं०) उर्चिस्-तीव्र प्रभावाला (त्रि.) ॥ ४४ ॥ साहस-जबरदस्ती करनी, मद(न.) | कनीयस्-छोटा भ्राता, बहुत थोड़ा, __ अतियुवा ( जवान) (त्रि.) सरसा-आषाधमद (तुलसा ),कलहंस-बत्तक. राजहंस ( जिसकी (स्त्री०) चोंच और चरण रक्तहों) राजाओंमें हविस्-घृत, देवान्न (न० )॥४५॥ श्रेष्ठ राजा (पुं० ) ॥ ४८ ॥ "Aho Shrutgyanam"

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