Book Title: Vipaksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 698
________________ ६६६ विपाकश्रुते. सर्वादरेण - सर्वप्रयत्नेन, 'सव्वविभूईए' सर्वविभूत्या - सर्वैश्वर्येण, सर्वसंपदेत्यर्थः, सर्वविभूषया - सर्वविधनेपथ्यादिधारणेन सर्वशोभयेत्यर्थः, सर्वसंभ्रमेण - सर्वेण औमुक्येन स्नेहमयेन चाञ्चल्येनेत्यर्थः, सर्वपुष्पगन्धमाल्यालंकारेण = सुगममेतत्, 'सव्वतुडियस दसण्णिणाएणं' सर्वत्रुटितशब्दसंनिनादेन सर्वविधानां त्रुटितानां वाद्यानां शब्दास्तेषां संनिनादः संमिलितः संगतो नादः महान् घोपस्तेनेत्यर्थः । अत्र सर्वशब्दो वहुतरार्थबोधकः, इति बोधयितुं तद्व्याख्यारूपेण पुनराह - 'महया इड्ढीए' इत्यादि । महत्या ऋद्धया, महत्या द्युत्या, महता समुदायेन = समूहेन महता वरत्रुटितयमकसमकवादितेन = महता- वृहता, वरत्रुटितानां श्रेष्ठविविधवाद्यानां यमकसम केन= युगपत् प्रवादितेन, 'संख- पणव पडड़ - भेरि - झल्ल रि- खरमुहिहुडुक्क - मुख्य-मुअंग- दुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं' शङ्ख- पणव- पटह- भेरी-झल्लरीखरमुखी - हुडुक्क - मुरज- मृदङ्ग-दुन्दुभिनिर्घोषनादितरवेण शङ्खादिदुन्दुभ्यन्तानां वाद्यविशेषाणां निर्घोषस्य नादितरवेण प्रतिध्वनिना, 'रोहीडगं णय रं' रोहितकस्य नगरस्य 'मज्झं मज्झेणं' मध्यमध्येन 'जेणेव वेसमणरण्णो गिहे' यत्रैव वैश्रवणस्य राज्ञो गृहं 'जेणेव वेसमणे राया' यत्रैव वैश्रवणो राजा ' तेणेव उवागच्छ तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता' उपागत्यू 'करयल जाव वद्धावेड' करतलपरिगृहीतं शिर- आवर्त मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा वैश्रवणं राजानं जयेन विजयेन जय 1 माला आदर से, सर्व प्रकार की विभूति से, सर्व प्रकार के नेपथ्यादिक के धारण से, सर्व प्रकार के संभ्रम से, सर्व प्रकार के पुष्प, गंध, एवं अलंकारों से, सब तरह के वादित्रों की गडगडाहट से, महती / ऋद्धि से, महती श्रुति से, महान सैन्यादिरूप बल से, महान् समुदाय से, अनेक प्रकार के सुन्दर२ साथ२ बजते हुए शंख, पणव, पटह, भेरी, झल्लरी, खरमुही, हुडुक्क, मुरज मृदंग दुन्दुभी के शब्दों की प्रतिध्वनि के साथ रोहितक नगर के ठीक मध्यभाग से होता हुआ जहां वैश्रवण राजा का प्रासाद था वहां पर गया । 'उवागच्छित्ता करयल जाव वद्धावेड़ जाकर उसने दोनों हाथ जोडकर राजा को નેપથ્યાદિક ધારણથી, સ` પ્રકારનાં સભ્રમથી, સવ` પ્રકારનાં પુષ્પ, ગધ, માલા અને અંકારાથી યુકત તથા તમામ પ્રકારનાં વાજીંત્રાના નાદ સાથે મહાઋદ્ધિ-શ્રુતિ, મહારૌન્ય રૂપ બળ અને મેટાં સમુદાય સાથે અનેક પ્રકારના સુન્દર સાજ-વાગતા-શંખ, पालुव, पटूडे, लेरि, आसर, परभुणी, हुडुङ, भुरन, भृमंग, हुन्हुलीना शण्होनं प्रतिધ્વનિ સાથે રહિતક નગરના ખરાખર મધ્ય ભાગમાંથી પસાર થઈને જ્યાં વૈશ્રવણ राज्Mनो भडेस इतो त्यां भाग गया. ' उवागच्छित्ता करयल० जाव बद्धावे माने तेथे जन्ने हाथ लेडीने शलने " याप भयवन्त हो, सायनो-विनय हो ?" , ,

Loading...

Page Navigation
1 ... 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825