Book Title: Vipaksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 793
________________ ५३ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु. २, अ. १, सुवाहुकुमारवर्णनम् ॥ मूलम् ॥ से णं सुबाहुदेवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिइ, केवलं बोहिं बुज्झिहिइ, बुज्झित्ता तहारूवाणं थेराणं अंतिए मुंडे जाव पव्वइस्सइ। से णं तत्थ बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणिहिइ, पाउणित्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सणंकुमारे कप्पे देवत्ताए उववजिहिइ । तओ माणुस्सं, पव्वज्जा, बंभलोए, माणुस्सं, महासुक्के, माणुस्सं, आणए, माणुस्सं, आरणए, माणुस्सं, सव्वसिद्धे। से णं तओ अणंतरं उबहित्ता महाविदेहे वासे जाई अड्ढाइं जहा दढपइपणे सिज्झिहिइ । एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमहे पण्णत्ते ति बेमि ॥ सू० १३ ॥ . ॥ इति पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ टोका 'से गं' इत्यादि । 'से णं सुवाहुदेवे' स खलु सुवाहुर्देवः 'ताओ देवलोगाओ' तस्मात् सौधर्मनामकात् देवलोकात् 'आउक्खएणं' आयुःक्षयेण= करते हुए समाधिभाव से काल कर सौधर्मस्वर्ग में-जहां दो सागर की उत्कृष्ट स्थिति है बहां-देवकी पर्याय से उत्पन्न हुए ॥सू०१२॥ ___से णं सुबाहदेवे०' इत्यादि। अब ‘से णं सुबाहुदेवे' वह सुबाहुदेव 'ताओ देवलोगाओ' उस देवलोक से 'आउक्खएणं' आयु के क्षय से-आयु कर्म के दलिकों की ભાવથી કાલ પામવાના અવસરે કાલ પામીને સૌધર્મ સ્વર્ગમાં-જ્યાં બે સાગરની Seट स्थिति छ त्यां-हेवनी पर्यायथा उत्पन्न थया. (सू० १२) . 'सेणं सुबाहुदेवे' त्याह. ... वे 'से णं सुबाहुदेवे' ते सुमाव 'ताओ देवलोगाओ' ते पोथी ' आयुक्खएणं ! मायुश्यना यक्ष यता-मायुभना सिडनी नि। थवाथी.

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