Book Title: Vipaksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 798
________________ ... .. विपाकश्रुते प्रकारो भाषः ‘पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः कथितः। 'त्ति बेमि' इति ब्रवीमि यथा भगवतः समीपे मया श्रुतं तथा त्वां कथयामीति ॥ सू० १३ ॥ . ॥ इति श्री - विश्वविख्यात - जगद्वल्लभ -- प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषा कलितललितकलापालापक - प्रविशुद्धगद्यपचनैकग्रन्थनिर्मायकबादिमानमर्दक- श्रीशाहूच्छत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त- जैन शास्त्राचार्य' पदभूषित - कोल्हापुरराजगुरुवालब्रह्मचारि जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकर--पूज्यश्री-घासीलाल - व्रतिविरचितायां विपाकश्रुते । द्वितीयश्रुतस्कन्धस्य विपाकचन्द्रिकाख्याया व्याख्यायाम् ‘सुवाहुकुमार' नामकप्रथममध्ययनं सम्पूर्णम् ॥२॥ ॥१॥ जंबू स्वामी से कहा कि-सिद्धगति प्राप्त श्रमण भगवान महावीरने हे जंबू.! सुखविपाक के प्रथम अध्ययन का पूर्वोक्त भाव कहा है उनके समीप जैसा सुना उसी प्रकार में ने यह तुम से कहा है ॥१३॥ ॥ इति श्री विपाकश्रुत के दुःखविपाक नामक द्वितीय - श्रुतस्कन्धकी 'विपाकचन्द्रिका' टीका के हिन्दी अनुवाद में 'सुबाहकुमार' नामक प्रथम अध्ययन सम्पूर्ण ॥२-१॥ અહિ સુધી શ્રી સુધર્માએ જંબૂસ્વામીને કહ્યું કે સિદ્ધિગતિને પામેલા શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે હે જખ્ખ! સુખવિપાકના પ્રથમ અધ્યયનને પૂર્વોક્ત (આગળ કહેવા પ્રમાણે) ભાવ કહ્યો છે, તેમની પાસેથી જેવું સાંભળ્યું છે, તેવું જ મેં તમને કહ્યું છે. (સૂ) ૧૩) વિપાકથુતના સુખવિપાક નામના બીજા શ્રુતસ્કંધની . 'विपाकचन्द्रिका' ना गुराती मनुवाहमा 'सुवाहुकुमार' नामर्नु प्रथम अध्ययन : .... सम्पूर्णः ॥ २॥ १... .....

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