Book Title: Vipaksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 773
________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० २, अ० १, सुबाहुकुमारवर्णनम् 'एवं भासई' एवं भाषते अहो ! सुमुखो गाथापति-रीदृशः प्रभावशाली यस्य .महिमा दवैरपि गीयते; इत्यादि विशेषवचनैर्वदति । ‘एवं पनवेई एवं प्रज्ञापयति 'दानं स्वर्गापवर्गकपाटोद्घाटनसमर्थ-' मिति वोधयति । ‘एवं परूवेई' एवं प्ररूपयति अभयसुपात्रादिदानमस्माभिरवश्यं कर्त्तव्य' मिति बोधयन् कथयति, किं कथयती ?-त्याह-'धण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई' धन्य धन्यवादयोग्यः खलु हे देवानुप्रियाः ! सुमुखो गाथापतिः 'जाव' यावत्-यावच्छब्देनार्य सङ्ग्रहः-'सपुण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई, कयत्थे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई । कयलक्खणे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई । कयविहवे णं देवाणुप्पिया ! सुसुहे गाहावई । सुलद्धे णं देवाणुप्पिया ! तस्स सुमुहस्स गाहावइस्स जम्मजीवियफले, जस्स इमा एयारूवा उराला माणुस्सरिद्धी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया' 'सपुण्णे णं' सपुण्यः पुण्येन युक्तः खल्लु गद्स्वर होकर एवं भासइ' इस प्रकार कहते हैं कि यह सुसुख गाथापति बडा ही भाग्यशाली है, देखो इसकी महिला देवता तक भी गाते हैं । 'एवं पन्नवेइ' इस प्रकार प्रज्ञापना करते हैं यह बातसच है कि-दान,स्वर्ग और अपवर्ग-मोक्ष के द्वार के कपाट को उघाडने में समर्थ है । 'एवं परूवेई' इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि हमलोगों का भी कर्तव्य है कि हमलोग, भी सुपात्र दान दिया करें । फिर कहते हैं कि-'धण्णे णं देवाणुप्पिया! सुमुहे गाहावई जाव तं धण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई' देखो जब देवता तक सुमुख गाथापति की प्रशंसा कर रहे हैं तो हमलोगों की तर्फ से भी यह अनिवार्य धन्यवाद का पान है । यावत् शब्द से ग्रहण किये गये पद इस प्रकार हैं-'सपुण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई, कयत्थे पं. देवाणुप्पिया! આ પ્રકારે કહેવા લાગ્યા કે આ સુમુખ ગાથાપતિ મહાભાગ્યશાળી છે, જુઓ, તેનો મહિમા देवतामा ५ गाय छ ‘एवं पन्नवेइ' भने । प्रमाणे २ ४२ मे पात सायी छ । स्वर्ग भने 'अयश' 'मोक्ष' ना ४२वान धावामा हान' समर्थ छ, 'एवं पुरूवेइ' मा प्रभारी प्र३५५५ ४२ छ - S५२थी सभा३ ५५ तव्य छ કે અમારે સીએ સુપાત્રોને દાન આપ્યા કરવું જોઈએ, ફરી પણ કહે છે કે, 'धण्णे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई जाव तं. धण्णे णं देवाणुप्पिया! सुमुहे गाहावई' तुमी, न्यारे वतामा सुधाना सौ सुभुम. गायापतिनी - प्रशस ४२ छ तो मा सोना तरथी ५ ते मनिवार्य धन्यवाहने पात्र छ, 'यावत् ' शपथ ग्रहण ४२पामा मावस पह! मा प्रभारी छे. "सपुण्णे णं देवाणुप्पिया!

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