Book Title: Vipaksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 785
________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० २, अ० १, सुबाहुकुमारवर्णनम् ४५ पर्वत शिखरस्थितजननिवासः समागतप्रभूतपथिकजननिवासो वा । संनिवेशःसमागतसार्थवाहादिनिवासस्थानम् । ते ग्रामनगरादयो धन्याः 4 ' जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरई ' यंत्र खलु श्रमणो भगवान् महावीरो विहरति = विचरति । तथा 'धण्णा णं ते ' धन्याः खलु ते 'राईसरतलवरमाडंवियकोडुंबिय - इन्भ - सेहि सेणावइ सत्थवाहप्पभियओ' राजेश्वरतलवरमाडम्बिक कौटुम्बिकेभ्य-श्रेष्ठि-सेनापतिसार्थवाहमभृतयः, तंत्र - राजानः = चक्रवर्त्त्यादयः, ईश्वराः = ऐश्वर्यसम्पन्नाः - प्रभूतऋद्धिसम्पन्ना इत्यर्थः, तलबराः = सन्तुष्टभूपालदत्तपट्टबन्धपरिभूषित राजकल्पाः, माडम्बिका:= ग्रामपतयः, इतरे प्रसिद्धाः । ' जेणं' ये खलु 'समणस्स ३' भ्रमणस्य भगवतो महावीरस्य आकर रहने लगते हैं । धन्य है वह संवाह - (कृषीवलों द्वारा धान्यकी रक्षा के लिये बनाया गया दुर्गभूमिस्थान अथवा पर्वत की चोटी पर रहा हुआ जनाधिष्ठित स्थल विशेष या जिसमें यहां वहां से आकर मुसाफिर लोग निवास विश्राम करें ऐसा स्थल विशेष ) धन्य है वह संनिवेश - (जिसमें प्रधानतः सार्थवाह आदि बस रहे हों ) पत्तन दो प्रकार का होता है -१ जलपत्तन २ स्थलपत्तन । जहां पर केवल नौका से ही जाया जाता है वह जलपत्तन, एवं जहाँ गाडी आदि सवारियों से जाया जाता है वह स्थलपत्तन है अथवा नौका एवं शकट से जो गम्य है वह पत्तन तथा केवल नौका से जो गम्य होता है वह पट्टन है । धन्य है वह पत्तन ' जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ' जहाँ पर श्रमण भगवान महावीर विचरते हैं वे ग्रामादिक धन्य ત્યાં રહેવા લાગે છે.) ધન્ય છે તે સંવાહ (ખેડુતેા દ્વારા અનાજની રક્ષા પર રહેલું સ્થળ વિશેષ અથવા તે! જ્યાં ત્યાંથી આવીને માણસે નિવાસ કરે એવું સ્થળ) ધન્ય છે તે સનિવેશ, (જેમાં ખાસ કરીને સાવાહ આદિ નિવાસ કરે છે) પત્તન ખે પ્રકારનાં ડાય છે. (૧) જલપત્તન, (૨) સ્થલ પત્તન જ્યાં આગળ કેવળ વહાણુ દ્વારાજ જઈ શકાય છે તે જલપત્તન છે. અને જ્યાં ગાડી આદિ વાહના વડે જઈ શકાય છે તે સ્થળ 'પત્તન છે. અથવા તેા નૌકા–વહાણ અને ગાડાના સાધન વડે જઇ શકાય તે સ્થળ પત્તન છે. અથવા તા કેવલ વહાણથી જઈ શકાય તે પત્તન છે. ધન્ય છે તે यत्तन ! ' जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ' क्यों भागण श्रमय लगवान

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