Book Title: Vipaksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 790
________________ ५० - विपाकश्रुते वद्वन्दनार्थ परिषद् नगरान्निर्गता, राजाऽपि च वन्दनार्थं निर्गतः। 'तए णं' ततः खलु ‘से सुबाहुकुमारे' म सुबाहुकुमारः 'तं' तत् 'महया' महता ऋद्धिसत्कारसमुदयेन 'जहापढमं' यथा प्रथमं यथान्येन प्रकारेण भगवतीमूत्रे श.९ उ.३३ जमालिनिर्गतः 'तहा' तथा-अयमपि 'निग्गओ' निर्गत:-नवमशतकगत जमालिवद् रथेन निर्गत इत्यर्थः । 'धम्मो कहिओ' धर्मः कथितः-भगवता धर्मकथा कथिता 'परिसा पडिगया' परिपत् प्रतिगता-धमै श्रुत्वा प्रतिनिवृत्ता 'रायावि पडिगओ' राजाऽपि प्रतिगतः प्रतिनिवृत्तः। 'तए णं से सुबाहुकुमारे' ततः खलु स सुबाहुकुमारः 'समणस्स भगवओ महावीरस्स' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य 'अंतिए' अन्तिके समीपे 'धम्मं धर्म 'सोचा' श्रुत्वा 'णिसम्म' निशम्य-हृद्यवर्धाय 'हट्ट०' हृष्टतुष्टवित्तानन्दितः प्रीतिमनाः हर्षवशविसर्पहृदयः 'जहा मेहो' यथा मेघकुमारः महल से निकला । 'तए णं से सुबाहुकुमारे तं महया जहा पढमं तहा णिग्गओ' सुवाहुकुमार भी भगवतीसूत्र में वर्णित जमालि की तरह प्रभु की वंदना एवं उनसे धर्मश्रवण करने की भावना से पहिले की तरह भगवान के समीप आये । 'धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया, रायावि पडिगओ' प्रभुने समस्त परिषद एवं राजा को धर्म का उपदेश किया । उपदेश श्रवण कर परिषद एवं राजा सब के सब अपने२ स्थान पर बापिस गये । 'तए णं से सुवाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म हट्ट० जहा मेहो तहा अम्मापियरो आपुच्छइ ' सुबाहुकुमारने श्रवण भगवान महावीर के निकट धर्मश्रवण कर और उसे अच्छी तरह हृदय में निश्चित कर आनंद एवं हर्ष से प्रफुल्लित हो मेघकुमार की तरह घर आकर अपने श्रभा] ४२१। भाटे नीxvया २०१ ५ey पोताना भाडेसाथी नluया 'तए णं से सुबाहुकुमारे तं महया जहा पढमं तहा निग्गओ' सुशाभार ५ सपती सूत्रमा વર્ણન કરેલ જમાલી પ્રમાણે પ્રભુને વંદના અને તેમના પાસેથી ધર્મશ્રમણ કરવાની मापनाथी प्रथम प्रमाणु भगवाननी पासे माव्या 'धम्मो कहिओ परिसा पडिगया राया विपडिगो' प्रसुभे समस्त परिषद मने रासने धमना पहेश माध्य. उपदेश सामणीने परिषद मने रात सो पाताना स्थान५२ पाछा माव्या. 'तए णं से. सुवाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म हट० जहा मेहो तहा अम्मापियरो आपुच्छइं' सुमाईमारे श्रम भगवान महावी२. पासे ધર્મશ્રમણ કરી અને સારી રીતે હદયમાં નિશ્ચય કરી આનંદ-હર્ષથી પ્રકૃલિત થઈને

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