Book Title: Vipaksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 778
________________ ३८ विपाकश्रुते 'पभू णं' प्रभुः समर्थः शक्तः खलु 'भंते' हे भदन्त !' सुवाहुकुमारे' सुबाहुकुमारः 'देवाणुप्पियाणं' देवानुप्रियाणां = भवताम् अंतिए ' अन्तिके ' मुंडे भवित्ता ' मुण्डो भूत्वा 'अगाराओ' अगारात् = गृहं परित्यज्येत्यर्थः 'अणगारियं' अनगारितांसाधुतां 'पव्वत्तए' प्रत्रजितुम् ? अनगारितां स्वीकर्तुं समर्थः किम् ? इति भावः । भगवानाह - 'हंता' पभू' हन्त ! प्रभुः - हे गौतम ! सुबाहुकुमारः संयमग्रहणे समर्थोऽस्तीति भावः । 'हन्त' इति उक्तार्थस्वीकृतिवाचकमव्ययम् ॥ सू० ८ ॥ ॥ मूलम् ॥ तणं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदन णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाई हत्थि - सोसाओ णयराओ पुप्फकरंडाओ उज्जाणाओ कयवणमालप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवय विहारं विहरइ । तए णं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ ॥ सू० ९ ॥ की हैं और उन्हें अच्छी तरह से यह भोग भी रहा है । 'पभू णं भंते! सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वत्तए' श्री गौतम पूछते हैं कि हे भदन्त । यह सुबाहुकुमार देवानुप्रिय - आप के पास धर्म श्रवण कर द्रव्य एवं भावरूप से मुंडित हो घर का परित्याग करके प्रव्रज्या लेने के लिये समर्थ है क्या ? प्रश्न के समाधान निमित्त प्रभुने कहा 'हंता पभू' हां ! गौतम ! यह सुबाहुकुमार संयम ग्रहण करने में समर्थ है | सू० ८ ॥ प्राप्त हुरी छे, मने बहुत सारी रीते ते लोगवी रह्या छे 'पभू गं भंते ! सुबाहु कुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंढे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तएं' શ્રી ગૌતમ પૂછે કે-હે ભદન્ત તે સુખાહુકુમાર દેવાનુપ્રિય—આપના પાસે ધમ સાંભળી દ્રવ્ય અને ભાવરૂપથી મુઠિત થઈને ઘરનો ત્યાગ કરીને પ્રત્રયા (દીક્ષા ) લેવા માટે समर्थ छे? प्रश्नना समाधान निमित्ते असे अधु 'हंता पभू ' हा ! गौतम ! मे સુબાહુકુમાર સંયમ ગ્રહણ કરવામાં સમર્થ છે. ! સૂ૦ ૮ ૫

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