Book Title: Vipaksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 735
________________ र , विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १०, अञ्जूवर्णनम् ७०३ 'णेरइयत्ताए' नैरयिकतया 'उबज्जिाहिइ' उत्पत्स्यते । एवं 'संसारो' संसार:= भवाद्भवान्तरे परिभ्रमणं 'जहा पढमें यथा प्रथमे प्रथमाध्ययने मृगापुत्रवर्णनस् 'तहा णेयध्वं तथा नेतव्यं जाव वणस्सइएसु' यावद्वनस्पतिकेषु बनस्पतिकायेषु तत्रापि कटुकक्षेषु निम्बादिषु कटुकदुग्धकेषु-अर्कस्नुहीप्रभृतिषु वनस्पतिषु अनेक शतसहस्रकृत्वः अनेकलक्षवारम् उत्पत्स्य ते । घोरदुष्कृताचरणेन जीवो वनस्पतिज्वपि निकृष्टवनस्पतिष्वेव समुत्पद्यते इति भावः । . 'सा णं' सा खलु 'तओ अणंतरं' ततोनन्तरं तत्पश्चात् वनस्पतिभवात् 'उध्वट्टित्ता' उद्धृत्य=निस्सृत्य 'सचओभद्दे णयरे' सर्वतोभद्रे नगरे 'मयूरत्ताए' मयूरतया 'पञ्चायाहिइ' प्रत्यायास्यति-उत्पत्स्यते-इदमत्र बोध्यम् -अजूदारिकाजीवो वायुतेजोऽप्पृथिवीकायेषु परिभ्रमणं कृत्वा वनस्पतिभवानन्तरं मयूरभवं प्राप्स्यतीति । 'से णं तत्थ' स खलु तत्र-मयूरभवे, 'साउणिएहि' शाकुनिकैःपंक्षिघातकपुरुषैः 'बहिए समाणे' वधितःचधं प्राप्तः सन् 'तत्थेव सबओभद्दे कर 'इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवमटिइएसु णेरइएमु णेरइयत्ताए उववज्जिहिई' इस रत्नप्रभा पृथिवी के१ सागर की उत्कृष्ट स्थितिवाले नरक में नारकी का जीव होगी संसारो जहा पढमे तहा णेयव्यं' इसका भव से भवान्तर में भ्रमण प्रथम अध्ययन में वर्णित मृगापुत्र की तरह जानना चाहिये । यह उस भ्रमण में 'जाव वणस्सइएसु' वनस्पतिकायों में-कटुक वृक्ष-जैसे निम्बादिक वृक्षों में, कटुक दुग्धवाले वृक्ष-जैसे अके, स्नुही आदिकों में लाखों बार उप्तन्न होगी। क्यों कि घोर दुष्कृत्य के आचरणों से जीव वनस्पतियों में भी जो निकृष्ट वनस्पतियां होती हैं उनमें ही उसन्न होता है। फिर ‘सा णं तओ अणंतरं उचट्टित्ता सव्वओभद्दे णयरे मयूरत्ताए. पञ्चायाहिइ' यह वहां से निकलकर सर्वतोभद्र नामके नगर में मयूर के भव को लेकर जन्म धारण करेगी । “से णं तत्थ साउणिएहिं वहिए समाणे तत्थेव सव्वओभद्दे णेरइएसु णरइयत्ताए उववजिहिइ' मा २त्नप्रभा पृथिवीना मे४ सागरनी उत्कृष्ट स्थितिवाणा न२४भा ना२हीना 4 थशे. 'संसारो जहा पढमे तहा णेय,' तेनुं એક ભવથી બીજા ભવમાં પરિભ્રમણ પ્રથમ અધ્યયનમાં વર્ણવેલા મૃગાપુત્રની માફક one से. ते थे प्रा२ना प्रभाशुभा 'जाव वणस्सइएस' वनस्पति अयोमा ४sai વૃક્ષ જેવાં કે લીંબડા આદિ વૃક્ષોમાં, કટુક દૂધવાળાં વૃક્ષો-જેવાં કે આકડા, શેર, આદિમાં લાખાવાર ઉત્પન્ન થશે, કારણ કે ઘેર દુકૃત્યોના આચરણથી જીવ વનસ્પતિએમાં પણ જે હલકી, જાતની વનસ્પતિ હોય છે તેમાં જ ઉત્પન્ન થાય છે, પછી "सा..णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता सव्वओभद्दे णयरे मयूरत्ताए पचायाहिह"

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