Book Title: Vipaksutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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'. विपाकश्रुते थेरा जाइसंपण्णा जाव पंचहि समणसएहिं सद्धिं संपखुिडा पुवाणुपुचि चरमाणा गामाणुगामं दूइजमाणा जेणेव हत्थिणाउरे णयरे जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिमिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेसाणा विहरति । तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी सुदत्ते णामं अणगारे उराले जाव तेउलेस्से मासं मासेणं खममाणे विहरइ ॥ सू० ५॥
दीका भगवान् सुबाहुकुमारस्य पूर्वभवं कथयति एवं खलु इत्यादि ।
"एवं खलु गोयमा' एवं खलु हे गौतम ! 'तेणं कालेणं तेणं समएणं तस्मिन् काले तस्मिन् समये 'इहेब जंबुद्दीचे दीये भारहेवासे इहैव जम्बूहीपे द्वीपे भारते वर्षे 'हत्यिणाउरे गाम बरे होत्या हस्तिनापुरं नाम नगरमासीत् । तत् कीदृशम् 'रिद ऋद्धस्तिमितसमृद्धम् , 'तत्य पं वृत्यिणाउरे गयरें तत्र खल हस्तिनापुरे नगरे 'मुमुद्दे णामं गातावई परिवसई मुमुखो
एवं खलु गोयमा ! इत्यादि ।
गौतम के इस प्रकार पूछने पर प्रभुने कहा कि 'एवं खलु गोयमा 'तेणं कालेणं तेणं समएणं उस काल में और उस समय में इहेब अंबद्दीचे दीये भारहे वासे इत्यिणाउरे णाम जयरे होत्या' इस जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में हस्तिनापुर नामका नगर था 'रिद्धजो ऋद्ध, स्तिमित एवं समृद्ध था। 'तत्य णं इत्यिणाउरे गयरे मुमुहे णाम गाहावई परिवसई उस हस्तिनापुर नगर में सुमुख नामका एक गाथापति
"एवं खलु गोयमा!' त्याह.
मोतभा प्रभार पूछत्याप्रमुब्ने :- एवं खल गोयमा 3 गौतम! तेणं कालेणं तेणं समएणं' ते ४६ भने त भयन विधे 'इहेव जंहीवे दीवे भारहे वासे इत्यिणाउरे णाम पयरे होत्या. दीपना सन्तत्रिभ हस्तिनापुर नाभर्नु दनार तु. रिद्ध 3 स्तिभित भने नभृद्ध 'तत्य पं हत्यिणाउरे णयरे मुमुहे णाम गाहावई परिवसइ . ते स्तिनापुर नगरमा अनुमनामना से मायापति रहेता ता. 'अड्डे' ते नाहि वैलन संपन्न हता,

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