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विक्रम
गम्भीर खतरे का सामना कर एक सर्प की रक्षा की थी। एक ब्राह्मण तापस कमठ के अलाव में जल रहे लकड़ी के टुकड़े में छिपे सर्प की पार्श्वनाथ ने रक्षा की थी, जिसने मृत्यु के समय पार्श्वनाथ का प्रतिबोध पाकर धरणेन्द्र देवता की योनि प्राप्त की और तत्पश्चात् अपने फनों का छत्र बनाकर भयंकर वर्षा एवम् तूफान से पार्श्वनाथ की रक्षा की थी।
पार्श्वनाथ का विवाह कुशस्थल के राजा प्रसेनजित की पुत्री प्रभावती से हुआ था पार्श्वनाथ उदार एवम् परोपकारी होने से लोकप्रिय थे, फलतः उन्हें पुरीषादानीय कहा गया है । कुमारावस्था से तीस वर्ष की आयु तक सुख एवम् वैभव का उपभोग कर पार्श्वनाथ ने दीक्षा ग्रहण कर ली तथा ८४ दिन की घोर तपस्या के पश्चात् कैवल्याज्ञान प्राप्त कर अपनी धर्मदेशना द्वारा कई त्रसितों और मुमुक्षुत्रों को सत्य मार्ग पर प्रारुढ़कर कैवव्य और मोक्ष की ओर उन्मुख किया।
पार्श्वनाथ ने अपने अनुयायियों हेतु चार यमों ---अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह को अनिवार्य घोषित किया था। एच याकोबी" का विचार है कि बौद्ध साम फलसुत्त में महावीर द्वारा प्रचारित सिद्धान्तों के विवरण को पार्श्वनाथ के अनुयायियों से सम्बन्धित ही माना जाना चाहिए, यद्यपि चातुर्याम संवर के उल्लेख मात्र से इस निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन है। महावीर ने अपरिग्रह, प्रात्मानुशासन और धैर्य को चातुर्याम धर्म पर आरूढ़ होने हेतु अनिवार्य माना था, ताकि संयम मार्ग पर अग्रसर होकर पापकर्मों का क्षय किया जा सके।
परवर्ती जैन लेखकों के अनुसार गांधार के राजा नग्न जित, विदेह के राजा निमि, पांचाल के शासक दुर्मुख, विदर्भ के राजा भीम और कलिंग के शासक करकण्डु ने जैन अनुशासन को स्वीकार किया था।" पार्श्वनाथ का जीवनकाल ई. पू. ८७७ से ई. पू. ७७७ था और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महावीर के पूर्ववर्ती तीर्थकर मान्य किये जाने से इन शासकों का समय महावीर की धर्मदर्शना के पहले अर्थात् मोटे रूप से ई. पू. ८४२ से ई. पू. ६०० के बीच माना जा सकता है, यद्यपि अन्य किसी स्रोत से इन जनपदीय शासकों के सम्बन्ध में जानकारी अनुपलब्ध है।
मगध महाजनपद एवम् उससे सम्बद्ध क्षेत्रों में पार्श्वनाथ के अनुयायियों की संख्या विशाल थी। श्री महावीर के पिता स्वयम् पार्श्वनाथ के धर्म के अनुयायी थे और उनके वंशज्ञातृक क्षत्रिय को प्रतिष्ठित माना जाता था। महावीर के माता पिता ने पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित निम्रन्थ सिद्धान्तानुसार ही तपस्यापूर्वक जीवनत्याग किया था। उत्तराध्ययनसूत्र में वर्णित पार्श्वनाथ परम्परा के प्राचार्य केशी और महावीर के गणधर गौतम के संवाद से प्राचीन और नवीन निर्ग्रन्थ परम्परा की जीवन्तता स्पष्ट है। भगवतीसूत्र में पार्श्वनाथ के अनुयायी श्रावक कालासवेसिययुत्त एवम् महावीर के अनुयायी के बीच हुए विवाद का रोचक वर्णन है । नामधम्मकहाओ" से ज्ञात होता है कि काली नामक वृद्ध महिला पार्श्वनाथ के मत में दीक्षाग्रहण कर साध्वियों के प्रधान पुष्पुचूला के अनुशासन में सम्मिलित हुई थी। उप्पला की दो भगनियों ने पार्श्वनाथ के मत में दीक्षाग्रहण करने के पश्चात्
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