Book Title: Vikram Journal 1974 05 11
Author(s): Rammurti Tripathi
Publisher: Vikram University Ujjain

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Page 137
________________ १२८ विक्रम (दोनों प्रमाणों के अनुसार)। इन आंकड़ों से घबराहट तो होती है; किन्तु तत्कालीन संत्रास और सामाजिक असम्मान का सामना करती भारतीय नारी का एक स्पष्ट चित्र सामने अवश्य आ जाता है। २. महावीर के समय में नारी के प्रति सम्पूर्ण समाज के दृष्टिकोण में एक युगान्तरकारी परिवर्तन हुना। अब उसे 'दासी' अथवा 'भोग्या' रूप में केवल एक मात्र इन्हीं संन्दर्भो में देखना असम्भव हो गया। महावीर ने उसके व्यक्तित्व को नया आयाम दिया, जिससे उसका सामाजिक सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ी। गौतम बुद्ध की प्रथम शिष्या गौतमी ने जो मूलभूत प्रश्न उठाया था, वह आज भी उत्तर ढूंढ रहा है। गौतमी ने इसे गौतम बुद्ध से किया था। वस्तुत: वे इसका कोई सुसंगत समाधान नहीं दे सके । उन्होंने अन्य संघों में जो परम्परा प्रचलित थी उसका उल्लेख तो किया, किन्तु कोई बौद्धिक संतृप्ति वे नहीं दे सके। गौतमी की पृच्छा थी : 'भन्ते, चिरदीक्षिता भिक्षुणी ही नवदीक्षित भिक्षु को नमस्कार करे; ऐसा क्यों ? क्यों न नवदीक्षित भिक्षु ही चिरदीक्षिता भिक्षुणी को नमस्कार करे ?' बुद्ध ने कहा : गौतमी इतर संघों में भी ऐसा नहीं है। हमारा धर्मसंघ तो बहुत श्रेष्ठ है। इससे स्पष्ट है कि यदि बुद्ध अपने संघ में इस परम्परा को परिवर्तित करते तो उसकी श्रेष्ठता प्रभावित होती; किन्तु यहाँ महत्व का तथ्य यह है कि गौतमी ने प्रश्न उठाने का साहस किया है और बुद्ध ने उस पर ध्यान दिया है। नारी के जीवन-स्तर में प्रतिबिम्बित यह स्थित्यन्तर स्वयम् में एक इतिहास रखता है। 'जयन्ती' श्राविका की पृच्छाएं भी इस दृष्टि से महत्व रखती हैं। ३. साध्वियों से सम्बन्धित जो आंकड़े हम ऊपर दे आए हैं, उनका समाजशास्त्रीय दृष्टि से गहन महत्व है। इन आंकड़ों के मनोवैज्ञानिक अध्ययन से जो समस्याएँ उभरेंगी, उनमें से कुछेक इस प्रकार होंगी क. महावीर के संघ में साधुओं की अपेक्षा साध्वियाँ अधिक क्यों थीं ? क्या इसका कोई सामाजिक कारण था ? अथवा जैनधर्म की ऐसी कौन-सी विशिष्टताएँ थीं जिनके कारण पुरुष की अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक दीक्षित होती थीं ? क्या यह माना जाए कि पुरुष की अपेक्षा नारी अधिक धर्मानुरागी होती है या फिर स्वीकार किया जाए कि तत्कालीन समाज में पुरुषों की संख्या स्त्रियों की संख्या से कम थी; और यदि ऐसा ही था तो समाज में पुरुष की प्रधानता क्यों थी ? ख. क्या विवाह-संस्था उलझनपूर्ण थी? कहीं 'दहेज' जैसी घातक प्रथानों का परिणाम तो यह बढ़ी हुई संख्या नहीं थीं? कहीं ऐसा तो नहीं था कि नारी पर हुए लगातार प्रताड़नों और अत्याचारों के फलस्वरूप उसमें कोई सामाजिक जुगुप्सा उत्पन्न हो गयी थी और उसने अपनी अभिव्यक्ति की यह नहर खोज निकाली थी? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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