________________
विक्रम
५४ चौदह पूर्व-उत्पाद, अग्रावरणीय, वीर्यप्रवाद, अस्तिनास्तिप्रवाद, ज्ञानप्रवाद, सत्य
प्रवाद, आत्मप्रवाद, कर्मप्रवाद, प्रत्याखानप्रवाद, विद्यानुप्रवाद, अवन्ध्य, प्राणायुप्रवाद, क्रियाविशाल, लोकबिन्दुसार ।
ब. प्रि. बु. फि., पृष्ठ ३८० । ५६ से. बु. ई. ४५, पृष्ठ १२२-२३ । ५७ श्वेताम्बर एवम् दिगम्बर भेद को जैनमत का मूलभूत अन्तर मानकर क्रमशः पार्श्व
नाथ एवम् महावीर के अनुयायी रूप में प्रकट करने का भी परामर्श दिया जाता है, परन्तु यह युक्तियुक्त नहीं है क्योंकि श्वेताम्बर-दिगम्बर विभेद तो महावीर के
शताब्दियों पश्चात् अस्तित्व में पाया था। ५८ जलाएडिजे के, पृष्ठ २७, महावीर द्वारा घोषित । ५६ महावीर द्वारा घोषित ६ लेश्याओं को पार्श्वनाथ के ६ जीवनिकाय का परिष्कृत रूप
भी माना जाता है । (प्राचारांग, २।१५-१६) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org