Book Title: Veervaan
Author(s): Rani Lakshmikumari Chundavat
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 175
________________ परिशिष्ट ४. मुहणोत नैणसी का वक्तव्य "बीरम महेवे के पास गुढ़ा बांधकर रहता था । महेवे . में खून कर कोई अपराधी वीरमदेव के गूढ़े में आ शरण ले लेता तो वह उसे रख लेता और कोई उसको पकड़ने न पाता । एक समय जोइया दल्ला भाईयों से लड़कर गुजरात में चाकरी करने चला गया; बहुत दिनों तक वहां रहा और विवाह भी कर लिया। अब उसकी इच्छा हुई कि स्वदेश में जाना चाहिये, अपनी स्त्री को लेकर चला, मार्ग में महेवे पहुँचकर एक कुम्हारी के घर डेरा किया । कुम्हारी से कहा कि वाल बनाने के वास्ते किसी नाई को बुला दे । वह नाई को लै आई, बाल बनवाये ! नाई की जात चकोर होती है, चारों ओर निगाह फैलाई, अच्छी घोड़ी, सुन्दर स्त्री देखी और यह भी भांप लिया कि द्रव्य भी बहुत है, तुरन्त जाकर राव जगमाल से कहा कि आज कोई एक धाड़ेती यह! आकर अमुक कुम्हार के घर उतरा है, उसके पास एक अच्छी घोड़ी है और स्त्री भी उसकी निपट सुन्दर मानों पद्मनी ही है । जगमाल ने अपने आदमी. भेजे कि जाकर खबर लावो कि वह कौन है । गुप्तचर कुम्हार के घर आकर सब देख-भाल कर गये । तब कुम्हारी ने दल्ला को कहा कि ठाकुर ! तुम्हारे पर चूक होगा । दल्ला उसका अभिप्राय न समझा, पूछा क्या होगा ? बोली, बाबा तुम्हें मारकर तुम्हारी घोनी और गृहिणी को छीन लेंगे। दल्ला-कौन ? कुम्हारी-इस गांव को ठाकुर । दल्ला-किसी तरह बचाव भी हो सकता है ? कुम्हारी-यदि बीरमजी के पास चले जाओ, तो बच जाओ। उसने चट घोड़ी पर पलाण रखा और स्त्री को लेकर चल दिया, वीरम के गुढ़े में जा पहुँचा । जगमाल के आदमी आये, परन्तु उसको वहां न पार लौट गये और कह दिया .

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