Book Title: Veervaan
Author(s): Rani Lakshmikumari Chundavat
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 178
________________ बोरवाण माया चूण्डा, को. पाल्हा चारण के पास भेज दिया ! जहां धाय चूण्डा को सदा गुप्त रखती और भलीभांति उसका पालन पोषण करती थी। राव वीरमदेव के चार राणियां थी ? भटियाणी जसहड़ राणा दे, जिसका पुत्र राव चूण्डा; २-लालां मांगलियाणी कान्ह केलणोत की बेटी, जिसका पुत्र सत्ता; ३-चन्दन यासराव रिणमलोत की. वेटी, जिसका पुत्र गोगादेव; ४-इदी लाछां, अगमसी सिखरावत की . बेटी, जिसके पुत्र देवराज और विजपराज। . राव चूण्डा-जब धाय चूण्डा को लेकर कालाऊ गांव में आल्हा चारण के पास पहुँची, तो उससे कहा कि बाई जसहड़ ने सती होने के समय तुमको श्राशीष के साथ यह कहलाया ... हैं कि इस बालक को अच्छी तरह रखना, इसका भेद किसी पर प्रकट मत करना मैंने. इसको तुम्हारी गोद में दिया है । चूण्डा वहां धाय के. पास रहने लगा। कोई पूछता तो चारण कहता कि यह इस रजपूतानी का बालक है. । इस प्रकार चूण्डा अाठ नव वर्ष का हो गया। एक दिन बर्सात के दिनों में ग्वाल गांव के बछड़ों को लेकर जल्दी ही.. जंगल में चराने को ... चला गया था और चारण के बछड़े घर पर रह गये, तब अाल्हा की माता ने कहा "वेटा ... चूण्डा ! ना, इन बछड़ों को जंगल में दूसरे बछड़ों के शामिल तो कर या ।" चूण्डा उनको लेकर वन. में गया, परन्तु दूसरे बछड़े उसको कहीं नजर न आये, तब तो रोने लगा। पीछे से चारण घर में पाया चूण्डा को न देखकर माता को पूछा कि चूण्डा कहां है ?. कहा बछड़े छोड़ने वन में गया है । चारण कहने लगा, माता तूने अच्छा नहीं किया, चूण्डा को नहीं भेजना चाहिए था । जब दूसरे बछड़े न मिले.. तो अपने बछड़ों को वहीं खड़े कर चूण्डा एक वृक्ष की छाया में सो गया । पीछे से आल्हा भी हूँढता हूँढता वहां पहुंचा तो देखा कि बछड़े खड़े हैं, चूण्डा सोता है और एक सर्प उस पर छत्र किये बैठा है । मनुष्य के पांव की श्राहट पा नाग बिल में भाग गया, चारण ने जा. चूण्डा को जगाया, कहा बाबा तु जंगल में क्यों अाया, घर पर चल । घर आकर मां को कहा कि अब कभी. इसको बाहर मत भेजना । फिर चारण ने एक अच्छा घोड़ा लिया, कपड़े का उत्तम जोड़ा बनवाया, शस्त्र लाया और चूण्डा को सजा सजू कर महवे रावल मल्लिनाथ के पास ले गया । मालाजी का प्रधान और कृपापात्र एक नाई था । पाल्हा उससे जाकर मिला, बहुत कुछ कहा सुनी की, तो नाई बोला, रावलजी के पावों लगायो । शुभ दिवस देख चारण चूण्डा को राव मालाजी के पास ले गया और उसने बहुत कुछ धैर्य बंधाकर अपने पास रक्खा । चूण्डा भी खूब चाकरी करता था । एक दिन रावल के पंलग के नीचे सो रहा और नींद या गई। जब मालाजी सोने को अाये तो पलंग तले एक आदमी सोता पाया । जगाया, चूण्डा को देख रावलजी राजी हुए । अवसर पाकर नाई ने भी विनती की कि. चूण्डा अच्छा रजपूत है इसको कुछ सेवा सौंपिये । माला ने चूण्डा को गुजरात की तरफ अपनी सीमा की चौकसी के वास्ते नियत . किया और अपने भले राजपूतों को साथ में दिया । तब सिखरा ने कहा कि रावलजी मुझको समझकर साथ देना। रावलजी ने कहा कि जो हमारी याज्ञा है । घोड़ा सिरोपाव देकर चूण्डा को ईदे राजपूतों के साथ विदा किया । वह काछे के थाने पर जा :

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