Book Title: Veervaan
Author(s): Rani Lakshmikumari Chundavat
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ १० वीरवाण इधर रणखेत में जोगी गोरश्वनाथजी आं निकले । गोगादेव को इस तरहं बैठा देखा, उन्होंने उसकी जंघा जोड़ दी और अपना शिष्य बना कर ले गये, सो गोगादेवं अंब तक चिरंजीव है। . . . . . . . . . . . . . .' अडकमल या अरडकमल चण्डावत ( राठौड़ राव चण्डा का पुत्र)-जैसा कि. ऊपर लिख आयें हैं कि अडकमल को भैंस. का लोह करने पर उसके पिता ने बोल. मारा, (कि भैंस का लोह किया तो क्या, मैं तो प्रशंसा जत्र करु, कि ऐसा- ही लोह राव गणगेद. या उसके बेटे सादा पर किग जावे । ) पिता का वह बोल पुत्र के दिल में खटंकता था ! उसने स्थल स्थल पर अपने भेदिये यह जानने को बिठा रक्खे थे कि कहीं राणगर्दै या. . सादुल कुवर हाथ आवे तो उनको मारू । तभी मेरा जीवन सफल हो और पिता के बोल को सत्य कर बताऊँ। छापर द्रोणपुर में मोहिल ( चौहान ) राज करते थे वहां के राव . ने अपनी कन्या के सम्बन्ध के नारियल पूगलं में कुवर सादल राणगदे बोत के पास भेजे । ब्राह्मण पूगल पाया और भाटी राव से कहा कि मोहिला ने कुँवर सादल के लिए यह नारियल भेजे हैं । राव राणगदे ने उत्तर दिया कि हमारा राठौडों से बैर है, अतएव कुवर व्याह करने को नहीं आ सकता और ब्राह्मण को रुकसत कर दिया । यह समाचार संदूल को मिले कि रावजी ने मोहिलों के नारियल लौटा दिये हैं तो अपना आदमी भेजकर । ब्राह्मण को वापस बुलाया, नारियल लिये और उसे द्रव्य देकर विदा किया । प्रतिष्ठित. सरदारों के हाथ पिता को कहलाया कि नारियल फेर देने में हम अपयश और लोकनिंदा के भागी होते हैं, राठोडों से डरकर कब तक घर में घुसे बैठे रहेंगे, मैं तो मोहिलाणी को व्याह कर लाऊंगा । वह टीकावत पुत्र और जवान था। राव ने भी विशेष कहना उचितं नं समझा। इसने अपने राजपत इकट्ठे कर चलने की तैयारी करलो और पिता के पास मोरं नांमी अश्व संवारी के लिए मांगा। राव ने कहा कि तू इस घोड़े को रखना नहीं जानता; या तो हाथ से खो देगा या किसी को दे श्रावेगा। वेटा कहता है पिताजी ! मैं इस घोड़े की अपने प्रोण के समान रक्खूगा । अब पिता क्या कहे, घोड़ा दिया, कुवर केसरिये कर व्याहने चढा, छापर पहचा और माणकदेवी के साथ विवाह किया । राव कलण का पुत्रा मागणुक भाटियाणी जबर्दस्त थी । उसने गढ द्रोणपुर में विवाह न करने दिया, तब राव माणक सेवा ने अपनी कन्या और राणा खेता की दोहिती को अोरीठ गांव में ले जाकर सादूल के साथ व्याही थी। मोहिलों ने सदूल को सलाह दी कि तुम अपने किसी बड़े भरोसे वाले सरदार को छोड़ जाओ । वह दुलहन का रथ लेकर पूगल पहुंचा जावेगा, तुम तुरन्त चढ़ चलो, क्योंकि दुश्मन कहीं पास ही घात में लगा हुयां है । सादूल ने कहा कि मैं त्याग बांटकर पीछे चढ़ेगा । राठोडों के भेदिये ने जाकर अरडकमल को खबर दी कि सादुल मोहिलों के यहां ब्याहने आया है, वह तुरन्त नागौर से चढ़ा। इस वक्त एक श्रशुभ शकुन हुआ । महाराज साथ था, उसको शकुन का फल पूछा तो उसने कहा कि अंपन कालू गोहिल के यहां चलेंगे, जब वह आपकी जीमने की मनुहार करे तो उसको अपने शामिल भोजन के लिए बैठा लेना । पहला ग्रास श्राप मत लेना, गोहिल को लेने .

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205