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वीरवारण
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राव चूण्डा के सरदार रणमल को ढढाण की तरफ ले गये । रणमल ने पिता के आज्ञानुसार साथ के सब राजपूतों को राजी कर लिया। केलण भाटी रणमल के पीछे लगा। रणमल एक गांव में पहुँचा, एकं पनघट के कूऐ के पास ठहरा । वहां पनिहारियां जल भरने आई । उनमें से एक बोली "बाई ! आज कोई ऐसा यहां. श्राया है कि जिसने अपने बाप को मरवाया, धरती खोई, उसके पीछे कटक आता है सो ऐसा न हो कि अपने को भी मरवावे ।" पनिहारी के ये वचन रणमल के कान में पड़े । वह बोला आगे नहीं जाऊंगा, पीछा करने वाली सेना से लडूंगा सब पीछे फिरे, शस्त्र संभाले, युद्ध हुआ, सिखरा ने बादशाही निशान छीन लिया । मुगल और भाटी भागे और रणमल नागोर में आकर पाट बैठा।
गोगादेव थलवट में रहता था। वहां जब दुष्काल पड़ा तो मऊ (लोग या प्रजा). चली, केवल थोड़े मनुष्य वहां रह गये । आषाढ़ आया तब लोग गांवों में आकर बसे । उनमें बानर तेजा नाम का एक राजपूत गोगादेव का चाकर था, वह भी मऊ के साथ गया था। पीछे लौटता हुआ वह अपने पुत्र पुत्री और एक बैल स.हेत गांव मीतासर में रात्रि को ठहरा । प्रभात के समय जब वह स्नान को गया और पानी में बैठकर नहाने लगा. तब उस गाँव के स्वामी मोहिल ने उसको बेटी की गाली दी और कहा "अरे पापी, लोग तो यहां जल पीते हैं और तू उसमें बैठकर नहाता है ।" इतना कहकर उसके पराणी (घह लकड़ी जिसके एक सिरे पर लोहे की तीक्षण कील लगी रहती है) मारी; जिससे उसकी पीठ चीर गई । लोगों ने कहा कि यह गोगादेव का राजपूत है तो मोहिल बोला कि “गोगादेव जो करेगा सो मैं देख लूगा ।" तेजा वहां से अपने गांव आया । उसके घरमें प्रकाश देखकर गोगादेव ने अपने आदमी को खबर के लिए भेजा और फिर उसको बुलाया। दूसरे दिन जब गोगादेव तालाब पर स्नान करने गया तो तेजा भी उसके साथ गया था। जब नहाने लगे तो गोगादेव ने तेजा की पीठ में घाव देखकर पूछा कि यह कैसे हुआ ? उसने उत्तर दिया कि मीतासर के राणा माणकराव मोहिल ने मेरी पीठ में पार लगाई और ऐसा कहा है । इस पर गोगादेव साथ इव टठा करके मोहिली पर चढ़ा। उस दिन वहां बहुत सी बरातें आई थीं। लोगों ने समझा कि यह भी कोई बरात है । द्वादसी के दिन प्रातःकाल ही गोगादेव चढ़ दौड़ा, लड़ाई हुई, राणा भाग गया, दूसरे कई मोहिल मारे गये, गांव लूटा, और २७ बरातों को भी लूटकर अपने राजपूतों का बैर लिया।
गोगादेव जब जवान हुआ, तब अपने पिता का बैर लेने के लिए उसने साथ इकटठा किया और जोहियों पर चढ़ चला । इस बात की सूचना जोहिंधों को होते ही वे भी युद्ध के लिए उपस्थित हो गये । ( शत्रु को धोखा देने ने लिए) गोगादेव उस वक्त पीछा मुड़ गया और २० कोस आकर ठहरा । अपने गुप्तचर को बैरी की खबर देने के लिए . छोड़ श्राप उसकी घात में बैटा अवसर देखने लगा । जोहियों ने जाना कि गोगादेव चला गया है तो फिर अपने स्थान को लौट आये । गुप्तचर ने पाकर खबर दी कि मैंने दल्ला जोहिया और उसके पुत्र धोरदेव का पता लगा लिश है और जहां वे सोते हैं वह ठौर