Book Title: Veervaan
Author(s): Rani Lakshmikumari Chundavat
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 195
________________ वीरवारण . पीछे से राणां पर चूक हुआ । उसने अचलदास खींची की मदद के वास्ते गढ़ से नीचे आकर डेरा किया था तब महपा ने चाचा को कहा कि आज अच्छा अवसर है, फिर हाथ अाने का नहीं ; तत्र चाचा मेरा और महपा बहुत सा साथ लेकर आये । राणाजी ने कहा कि "ये खातणवाले आते हैं सो अच्छा नहीं है । जौ गेहूँ में न आने चाहिये, यह मर्दाना के विरुद्ध है।" उस वक्त मलेसी डोडिया ने अर्ज की कि आपको राव रणमल ने चिताया था कि ये आपसे चूक करना चाहते हैं । राणा बोला कि ये हरामखोर अभी क्यों आये ? मलेसी ने अर्ज की कि दीत्रण ! पहले तो मैंने न कहा, परन्तु अब तो आप देखते ही हैं। (चाचा मेरा आन पहुँचे ) घोर संग्राम हुआ, नौ आदमियों को राणा ने मारा और पांच को हाड़ी राणी ने यमलोक में पहुँचाया, पांच का काम मलेसी ने तमाम किया, अन्त में राणा मारा गया। चाचा व महपा के भी हलके से घाव लगे, कुवर कुभा बचकर निकल गया । ये उसके पीछे लगे, कुभा पटेल के घर पहुँचा। पटेल के दो घोड़ियां थी। उसने कहा कि एक घोड़ी पर चढ़कर चले जाओ और दूसरी को काट डालो, नहीं तो वे लोग ऐंसा समझेगे कि इसने घोड़ी पर चढ़ाकर निकाल दिया है । कुभा ने वैमा हो किया । जो लोग खोजने आये थे वे पीछे फिर गये। मोकल को मारकर चाचा तो राणा बना और महपा प्रधान हुआ । कुंभा अाफत का मारा फिरता रहा । जब यह समाचार रणमल को लगे तो वह सेना साथ लेकर आया, चाचा से युद्ध हुआ और वह भाग कर पई के पहाड़ों पर चढ़ गया । रणमल ने कुभा को पाट बैठाया और आप उन पहाड़ों में गया, बहुत दौड़ धूप की, परन्तु कुछ दाल न गली, क्योंकि बीच में एक भील रहता था, जिसके बाप को रणमल ने मारा था । वह भील चाचा व महपा का सहायक बना । एक दिन रणमल अकेला घोड़े पर सवार उस भील के घर जा निकला । भील घर में नहीं थे, उनकी मां वहां बैठी थी । उसको बहन कहके पुकारा और बढ़कर उससे बातें करने लगा । भीलनी बोली - कि वीर ! तैने बहुत बुरा किया, परन्तु तुम मेरे घर आ गये अब क्या कर सकती हूँ। अच्छा अब घर में जाकर सो रहो । राव ने वैसा ही किया। थोड़ी देर पीछे वे पांचों भाई भील आये उनकी मां ने उनसे पूछा कि वेटा! अभी रणमल यहां आवे तो तुम क्या करो? कहा. करें क्या, मार; परन्तु बड़े बेटे ने कहा-" मां! जो घर पर आवे तो रणमल को न मारें। मा ने कहा-शावाश वेटा ! घर पर आये हुए तो वैरी को भी मारना उचित नहीं।" रणमल को पुकारा कि वीर बाहर आ जावो । वह कर भीलों से मिला । उन्होंने उसकी बड़ी सेवा मनुहार की और पूछा कि तुम मरने के लिए यहां कैसे आये ? कहा कि भानजो ! मैंने प्रतिज्ञा की है कि चचा को मारू तब अन्न खाऊ परन्तु करू क्या तुम्हारे आगे कल बस नहीं चलता है । भीलों ने कहा, अब हम तुमको कुछ भी ईजा न पहुंचावेंगे । फिर रणमल अपने योद्धाओं को लेकर पहाड़ तले आया; भीलों ने कहा कि पहाड़ के मार्ग में एक सिंहनी रहती है सो मनुष्य को देख कर गर्जना करेगी। रणमल तो पगडंडी चढ़ता हुआ सिंहनी के समीप जा पहुंचा, वह गर्ज उठी, तुरन्त अडवाल (अडकमल ) ने तलवार खींची उस पर वार किया और वहीं काट कर उसके दो टुकड़े कर दिये । सिंहनी का शब्द सुनकर ऊपर रहने वालों ने कहा कि सावधान ! परन्तु वह एक ही बार बोलने पाई थी इसलिए

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