Book Title: Veervaan
Author(s): Rani Lakshmikumari Chundavat
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 196
________________ वीरवाण उन्होंने सोचा कि किसी पशु को देखकर बोली होगी। इतने में तो रणमल घोड़े को नीचे छोड़ कर पहाड़ पर चढ़ गया और दर्वाजे पर जाकर बी मारा। भीतर जो मनुष्य थे, चौक पड़े और कहा, रणमल आया । चाचा मेरा से लड़ाई हुई, सीसोदियों को मार कर पांवों तले पटका चाचा मारा गया और महपा स्त्री के कपड़े पहन कर पहाड़ के नीचे कूद भाग गया । रणमल ने चाचा की बेटी के साथ विवाह किया, मनुष्यों के घरों के बाजोट और .. वर्छियों की चंवरी बना कर वहां सीसोदियों की कई कन्याए रणमल ने अपने भाइयों को विवाह दी और पीछा लौटा । महपा भाग कर मांडू के बादशाही की शरण गया । जब यह खबर राणाजी को हुई तब उन्होंने बादशाह पर दबाव ढाल कर कहलाया कि हमारे चोर को भेज दो। बादशाह ने महपा को कह दिया कि अब हम तुमको नहीं रख सकते हैं । महपा ने .. उत्तर दिया कि मुझको कैद करके शत्रु को मत सौंपिर और आप घोड़े सवार हो गढ़ के द्वार पर आ घोड़े समेत नीचे कूद पड़ा । घोड़ा तो पृथ्वी पर पड़ते ही मर गया और महपा भाग कर गुजरात के बादशाह के पास पहुँचा । जब उसने वहां भी बचाव की कोई सूरत न देखी तो चित्तौड़ ही की तरफ चला । वहां राज्य तो राणाजी करते थे, परन्तु राज का सत्र काम रणमल के हाथ में था । महपा रात्रि के समय लकड़ियों का भार सिर पर घर कर नगर में पैठा। उसकी एक स्त्री अपने पुत्र सहित वहां रहती थी, जिसको उसरे सुहागन कर रक्खा था । उसके घर आया, पत्नी ने अपने पति को पहचान कर भीतर लिया । अव वह घर में बैठा रहे और सूत के मोहरे व रस्से बनावे । एक दिन एक मोहरी अपने पुत्र को देकर कहा कि जाकर दीवाण के नजर करने और जो दीवाण कुछ प्रश्न करे तो अर्ज करना कि महपा हाजिर है । वेटे ने हजूर में जाकर मोहरी नजर की और दीवाण ने पूछा तो अर्ज कर दी कि महपा हाजिर है । राणा ने उसे बुलाया । उसने अर्ज की कि मेवाड़ की धरती राठोड़ों ने ली । यह बात सुनते ही दीवाण के मन में यह भय उत्पन्न हो गया कि ऐसा न हो कि रणमल मुझे मार कर राज लेले । राणा ने सेना एकत्रित की और वे रणमल को चूक से मार डालने का विचार करने लगे । रणमल के डोम ने किसी प्रकार वह भेद पा लिया और राव से कहा कि दीवाण श्राप पर चूक करना चाहते हैं, परन्तु राव को उसकी बात का विश्वास न आया तो भी अपने सब पुत्रों को वह तलहटी ही में रखने लगा । (अवसर पाकर ) एक दिक चूक हुआ। २५ गज पछेवड़ी राव के पलंग से लपेट दी, जिसपर राव सोया हुया था । सत्रह मनुष्य राव को मारने के लिये आये, जिनमें से १६ को तो राव ने मार डाला । और महपा भाग कर बच गया । रणमल भी मारा गया । यहां रणधीर चूण्डावत, सत्ता भाटी लूणकरणोत, रणधीर, सुरावत और दूसरे भी कई काम आये । (रणमल के पुत्र) जोधा, सीहा, नापा तलहटी में थे भाग निकले । उनके पकड़ने को फौज . भेजी गई, जिसने आडावला ( अर्वली) पहाड़ के पास उन्हें जा लिया और वहां युद्ध हुआ, . जहां चरड़ा, चांदराय, अरडकमलोत, पृथ्वीराज, तेजसिंह आदि और भी राठौड़ों के सर्दार मारे गये परन्तु जोधा कुशलतापूर्वक मंडोवर पहुँच गया ।

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