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वीरवाण
( दूसरे स्थान में ऐसा भी लिखा है )-"जब राव चूण्डा मारा गया तो राजतिलक . रणमल को देते थे, इतने में रणधीर चूण्डावत दर्वार में आया । सत्ता चूण्डावत वहां बैठा हुया था, उसको रणधीर ने कहा कि सत्ता ! कुछ देवे तो तुझे गद्दी दिला दू" सत्ता बोला. कि "टीका रणमल का है ।" रणधीर ने अपने वचन की सत्यता के लिए शपथ खाई, तत्र सत्ता ने कहा कि प्राधा राज तुझे दूगा । रणधीर तुरन्त घोड़े से उतर पड़ा और सत्ता के ललाट पर तिलक कर दिया । रणमल को कहा कि कुछ पट्टा ले लो, वह उसने मंजूर न किया
और राणा मोकल के पास गया । राणाने सहायता की, सत्ता भी सम्मुख हुआ और रणधीर राण नागोरी खान को लाया । सीमा पर लड़ाई हुई, रणमल तो खान के मुकाबले को गया और रणधीर ने बसना के राणाजी से युद्ध किया । राणाजी हार खाकर भागे, परन्तु खान को रणमल ने भगा दिया । सत्ता व रणमल दोनों के साथियों ने जय ध्वनि की, रणमल अपने दोनों भाईयों से मिला, बातचीत की, पीछा मोकल जी के पास चला गया । सत्ता गद्दी बैठा और राज करने लगा । कालांतर में सत्ता व रणधीर के पुत्र हुए, सत्ता के पुत्र का नाम नर्वद और रणधीर के पुत्र का नाम नापा था।
रणमल नित गोटें करता था इसलिए सोनगिरों के भले आदनी देखने को आये थे। उन्होंने पीछे नाडोल जाकर कहा कि नाठोड काम का नहीं है, यह तुम से न चूकेगा, तुमको मारेगा, इसलिए तुमको उचित है कि अपने यहां इसका विवाह करदो । तत्र लाला सोनगिरा की बेटी का विवाह उसके साथ कर दिया । फिर भी सोनगिरों ने देखा कि यह आदमी अच्छा नहीं है, तब उन्होंने रणमल पर चूंक करना विचारा । एक दि । रगामल सोया हुया था तब लाला सोनगिरे ने आकर अपनी स्त्री से कहा कि "रामी बाई रांड हो जायगी ?" स्त्री बोली "भले ही हो अवे, यदि एक लड़की मर गई तो क्या ।". ठकुराणी ने अपने पति को मद्य का प्याला पिलाकर सुलाया और बेटी से कहा कि रणमल से चूक है, उनको निकाल दे ! रामी ने आकर पति को सूचना दी कि भागो ! चूक हैं । घातक उसे मारने को आये, परन्तु वह पहले ही निकल गया और घर जाकर सोनगिरों से शत्रुता चलाई, परन्तु वे वार . पर न चढ़ते थे। उनका नियम था कि सोमवार के दिन आशापुरी के देहरे जाकर गोठ करते, अमल वारुणी लेते और मस्त हो जाते थे । एक दिन जब वे खा पीकर मस्त पड़े हुए थे तो अचानक रणमल उन परं चढ़ पाया और उसने सबको . मार कर अखावे के कुंए में डाल दिया । ऊपर सगे साले को डाला | कहा, मैंने सासूजी से वचन धारा है। उनका इलाका लिया, राणा मोकल से मिलने के वास्ते गया और वहीं रहने लगा । तब चाचा सीसोदिया और महपा पंवारने मोकल को मारा तव रणमल को उस चूक का भेद मालूम हो गया था, परन्तु राणा.को कुछ खबर न हुई । एक दिन महपा और चाचा महेगी । डोडिये के घर गये जो राणा का खवास था । रणमल ने अपने जासूस साथ लगा दिये थे . कि देखें ये क्या बातें करते हैं । चाचा महपा ने मलेसी को अपने में मिलाने का बहुत प्रयत्न किया, परन्तु वह न मिला । जासूस ने जाकर सारा वृतांत रणमल से कहा और उसने राणा को सुनाया, परन्तु मोकल ने इस पर विश्वास न किया। रणमल मंडोवर गया और