Book Title: Veervaan
Author(s): Rani Lakshmikumari Chundavat
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 189
________________ वीरवाण बायगा और उसे राठोड़ लेंगे । राणा ने पूछा, क्या तुम रणमल को मार सकते हो? अर्न . .. की कि जो दीवाण के हाथ हमारे सिर पर रहे तो मार सकते हैं । राणा ने श्रीज्ञा दी । राणा, एका चाचावत और महपा पंवार ने यहं मत दृढ़ किया तथा रात्रि के समय सोते हुए राव रणमल पर चूक कर उसे मारा । इसका सविस्तार हाल मेवाड़ की ख्यात में राणा के वर्णन में लिख दिया है । राव रणमल ने भी मरते मरते राजपतों के प्राण लिये । एक को कटार से मारा, दूसरे का सिर लोटे से तोड़ दिया और तीसरे का प्राण लातों से लिया । राणा की एक छोकरी 'महल चढ़ पुकारी "राटोड़ों! तुम्हारा रणमल मारा गया ।" तब रणमल के पुत्र जोधा कांधल अादि वहां से घोड़ों पर चढ़कर भागे । राणा ने उनके पकड़ने को फौज भेजी, लड़ाई हुई और उसमें कई सरदार. मारे गये । बरड़ा चन्द्रावत शिवराज, पूना, ईदा आदि । चरड़ा ने पुकारा "बड़ा बीजा!" तो एक दूसरा बीजा बोल उठा कि गला फाड़कर आप मरता हुआ दूसरों को भी ले मरता है । चरड़ा ने कहा कि मैं तुझको नहीं पुकारता हूँ । भीमा बरसल, वरजांग भीमावत मारे गये और भीग चूण्डावत पकड़ा गया। मांडल ने तालाब में अपने अपने घोड़ों को पानी पिलाया । उस वक्त एक ओर तो जोधा और सत्ता दोनों सवार अपने घोड़ों को पिलाते थे, और दूसरी तरफ कांधल अपने अंश्व को जलपान कराता था। कांधल ने उन दोनों सवारों से पूछा ( तुम कौन हो आदि )। जोधा ने काँधल की आवाज पहचानी, उससे बात की, दोनों मिले और वहीं जोधा ने उसे रावताई का टीका दिया । दोनों भाई मारवाड़े में आये । . . . दोहा--पागे सूरन काढ़िया तुंगम काढ़ी आय ।। . ... ... .. जे मिसगणो सेजडी, लड रिणमल राय || . . . . . रांव रिणमल नींदा भरै श्रावय लौह घणे उबारै, कटारी काढ़ मरघणी तिय आगै सुरन तुंगकिणी । तो दिन मेवाड़े तो विपख्य की पापं सांसन्नी तरपणं वही जै वैसा सक भकरणं . कृतघं । छंद अशुद्ध से हैं अर्थ ठीक नहीं लगता)। जै रिणमल होवत दल अतार कुभ करण बहन्त किसी पर । माथा सूल सही सुरताणां, अोस मुद्रावत आणां । जै वरती वी आणां । वे हूं सिंघावी चीलो हिन्दू अनैं हमीर मीर जै लुलिया भांजै । जै भग्गो पीरोज, खेत्रा जाह खड़े जै मारै । महमद गजगमारै संभेडो रिणमल राव विसरामिये । कु.भा की मन वीकसै छलायो छदम ते कूड़ कडकर, जेम सीह. आगै ससे । ... ... ( इसमें राव रणमल के वीरकृत्यों का वर्णन है जो उसने राणा के हित किये, और अंत में कहा है कि राणा ने छले छाकर रणमल को ऐसा मारा जैसे सिंह को ससा ने .मारा. था। (छंद शुद्ध न होने से सही अर्थ नहीं किया जा सकता है । ).. .. .....महपा परमारे पई के पहाड़ों से भागकर मांडू के बादशाह महमूद के पास जा रहा था । जब राणा कुंभा ने बादशाह पर चढ़ाई की तब राव रणमल राणा के साथ था।

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