Book Title: Veervaan
Author(s): Rani Lakshmikumari Chundavat
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 188
________________ १४ वीरवाण विस्मित और शोकातुर हो बोला हैं ! मोकल को.. मार डाला ?" पत्र वंचवाया, मोकल को जलांजलि दी और चित्तौड़ जाना विचारा । पहले २१ पांवड़े (कदम) भरे और फिर खड़े होकर कहा कि “मोकल का बैर लेकर पीछे और काम करूंगा।” “सिसोदियों की बेटियां वैर में राव चूण्डा की संतान को परणाऊ तो मेरा नाम रणमल ।' कटक सज चित्रकूट पहुंचे। सीसोदिये ( मोकल के घातक) भागकर पई के पहाड़ों में जा चढ़े और वहां घाटा बांध रहने लगे । रणमल ने वह पहाड़ घेरा और छः महीने तक वहां रहकर उसे सर करने के कई उपाय किये, परन्तुः पहाड़ हाथ न आया। वहां मेर लोग रहते थे । सिसोदियों ने उनको वहां से निकाल दिया था उनमें से एक .मेर राव रणमल से आकर मिला और कहा कि जो दीवाण की खातरी का पर्वाना मिल. जावे तो यह पहाड़ में सर: करा दू। राव रणमल ने पर्वाना करा दिया और उसे साथ ले ५०० हरियार बन्द: राजपूतों को लिये पहाड़ पर चढ़ने को तैयार हो गया । मेर बोला, श्राप एक मास तक और धैर्य रक्खें । पूछाकिसलिए ? निवेदन किया कि मार्ग में एक सिंहनी ने बच्चे दिये हैं । रणमल बोला कि सिंहनी. से तो हम समझ लेंगे तू तो चल । मेर को लिए आगे बढ़े। जिस स्थान पर सिंहनी थी वहां पहुंचकर मेर खड़ा रह गया और कहने लगा कि आगे नाहरी बैठी है। रणमल ने अपने पुत्र अरड कमल से कहा कि वेटा, नाहरी को ललकार । उसने वैसा ही किया । शेरनी झपटकर उस पर आई । इसका कटार पहले ही उसके लिए तैयार था, घूस घूसकर उसका पेंट चीर डाला । जब अगुवे ने उनको पहाड़ों में ले जाकर चाचा मेरा के घरों पर खड़ा कर दिया । रणमल के कई साथी तो चाचा के घर पर चढ़ और राव आप महपा पर चढ़कर गया । उसकी यह प्रतिज्ञा थी कि जहां स्त्री पुरुष दोनों घर में हों उस घर के भीतर न जाना, इसलिए बाहर ही से पुकारा कि "महपा बाहर निकल व तो यह शब्द सुनते ही ऐसा भयभीत हुआ कि स्त्री के कपड़े पहन झट से निकलकर सटक गया; रणमल ने थोड़ी देर पीछे फिर पुकारा तो उस स्त्री ने उत्तर दिया कि राज ! ठाकर तो मेरे कड़े पहनकर निकल गये हैं, और मैं यहां नंगे बदन बैठी हूं। रणमल वहां से लौट गया, चाचा मेरा को मारा और दूसरे भी कई सीसोदियों को खेत रक्खा । प्रभात होते उन सबके मस्तक काट · कर उनकी चवंतरी (. चंवरी ) चुनी, बछों की बहे बनाई और वहां सीसोदियों की बेटियों को राठौडी के साथ परणाई । सारे दिन विवाह कराये, मेवासा तोड़ा और वह स्थान मेरों को देकर राव रणमल पीछा चित्तौड़ गया, राणा कुभा को पाट बैठाया। दूसरे भी. कई बागी सरदारों को मेवाड़ से निकाला और देश में सुख शांति स्थापित की। (चित्तौड़ में राणा कुंभा के शुरू जमाने में राव रणमल पर ही राजप्रबन्ध का दारमदार हो गया था और उसने राणा के काका राव चूण्डा लाखावत को भी वहां से विदा करवा दिया जो मांडू के सुल्तान के पास जा रहा था । ) एक दिन राणा कुंभा सोया हुआ था और एका चाचावत. पगचंपी कर रहा था कि उसकी आंखों में से आंसू निकलकर राणा के पग पर बूदे गिरी । राणा की आंख खुली, एका को.रोता हुआ देख कारण पूछा तो उसने अर्ज की : कि मैं रोता इसलिए है कि अब देश सीसोदियों के अधिकार में से निकल

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