Book Title: Veervaan
Author(s): Rani Lakshmikumari Chundavat
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 177
________________ बोरवाण डाला। उसकी पुकार भी जोहियों के पास पहुँची, परन्तु वे चुप्पी साध गये । कहां हम वीरम से झगड़ा करना नहीं चाहते हैं । एक दिन बीरम ने दल्ला जोहियों ही को मारने का विचार कर उसे बुलाया । दल्ला खरसल (एक छोटी हलकी गाड़ी) पर बैठकर पाया जिसके एक तरफ घोड़ा और दूसरी तरफ बैल जुसा हुआ था। बीरम की स्त्री मांगलियाणी ने दल्ला को अपना भाई बनाया था। उसने जान लिया कि चूक है. सो जल के लोटे में दातने डालं कर वह लोटा दल्ला के पास भेजा । वह समझ गया कि दगा है । चाकर से कहा कि मेरा पेट कंसकता है सो जंगल जाऊंगा, फिर खरसल पर धैठ घर की तरफ चला। थोड़ी दूर पहूँच बैल व खरमल को तो वहां छोड़ा और याप घोड़े सवार हो घर पहुंच गया । घोड़े के स्थान पर एक राठी जुतकर खरसल खींचने लगा, बीरम अपने राजपूतों को इकट्ठे कर रहा था । जब वे सलाह कर आये और दल्ला को वहां न देखा तब पूछा वह कहां गया है ? चाकर ने कहा जी ! उसका पेट कसकता था सो जंगल गया है तब तो दलिया गहलोत बोल उठा कि दल्ला • गया । वीरम ने कहा कि खरसल चढ़ा कितनी दूर गया होगा, चलो अभी पकड़ लेते हैं । राजपूत ने कहा खरसल छोड़ घोड़े पर चढ़ गया । इन्होंने एक सवार खबर के लिए भेजा। उसने पहुंचकर देखा तो सचमुच एक तरफ बैल और दूसरी तरफ आदमी जुता खरमल खींच लिये जाते हैं । उसने लौटकर खबर दी कि टल्ला तो गया । सब कहने लगे कि भेद · खुल गया, अब जोहिये जरूर चढ़कर यावेंगे । दूसरे ही दिन जोहियों ने इकठे होकर वीरम की गायों को घेरा । ग्वाल याकर पुकारा, वीरम चढ़ पाया । परस्परं युद्ध ठना, बीरम और दयाल जोइया भिड़े बीरम ने उसे मार तो लिया परन्तु जीता वह भी न बचा और वहीं खेत रहा .. वीरम के साथी राजपूत गांव बड़ेरण से वीरम की ठकुराणी को लेकर निकले । मार्ग में जहां ठहरे वहां धाय ने एक आक के झाड़ के नीचे बीरम. के एक वर्ष के बालक पुत्र ...चूंडा को सुलाया, परन्तु चलते वक्त उसको उठाना भूल गयी । जब एक कोस. निकले. गये, तब बालक याद आया, तुरन्त एक सवार हरीदास - दल्लावत पीछा दौड़ा । इस स्थान पर पहुंचकर क्या देखता है कि एक सर्प चूण्डा पर छत्र की भांति फण: फैलाये ,पास बैठा है । .. यह देख पहले तो हरिदास को भय हुआ कि कहीं बालक पर आपत्ति तो नहीं प्रा. गई. है. । जब थोड़ा निकट पहुंचा तो सर्प वहां से हटकर बांची में घुस गया और सवार चण्डा: को उठाकर ले आयां, माता की गोद में दिया और सारी रचना कह सुनाई। अागे जाते हुए . : मार्ग में एक राठी मिला । उसको सब हकीकत कह इसका फल पूछा। राठी ने कहा यह . बालक छत्रधारी राजा होगा । वे लोग पड़ोलियां में आये । वहां राजा : लोग इकटठे हुए। .. चूण्डा की माता ने कहा कि मेरे पति से दूरी पड़ती है, मुझे तो उसी से काम है, इसलिए .मैं सती होऊगी । फिर चूण्डा को धाय के सुपुर्द कर कहा कि:"पृथ्वी माता और सूर्यदेव : इसकी रक्षा करें । तू इसे लेकर आल्हा चारण के पास चली जाना।" : फिर. चूण्डा की -माता और मांगलियाणी दोनों सती हुई और साथ. सब बिखर गया | चूण्डाजी के दूसरे तीन भाई गोगादेव, देवराज, और जैसिंह को उनके मामा उनकी ननिहाल को ले गये और

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