Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03 Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ard ततो जिनधर्म प्रकाममुद्यम कुरुत? तथाकृतेऽचिरेण शाश्वतपदाप्राप्तिर्भवतां भवतीति गौतमदेशनां श्रुत्वा गांगलिः भाषांतर उत्तराध्ययन सूत्रम् ६ मतिबुद्धो भणति, भगवन्नहं भवदंतिके प्रव्रज्यां गृहीष्ये, नवरं मातापितरौ पृच्छामि, ज्येष्टपुत्रं च राज्ये स्थापयामि. अध्य०१० एवमुक्त्वा गृहे गत्वा मातापितरौ पृष्टौ, ताभ्यामुक्तं यदि त्वं प्रबजिष्यसि तदा वयमपि प्रव्रजिष्यामः. ततः पुत्रं ॥५८१॥ 15॥५८१॥ BEIN राज्ये स्थापयित्या गांगलिराजा स्वमातृपितृभ्यां सह प्रबजितः. गौतमस्वामी तैः शिष्यैः सह पश्चादलितः. 'हे भव्यजनो! तमे विषयोमा आसक्ति न राखो. अनेक दुःखोथी दारुण आ संसारमा प्रतिबंध मा करो, अर्थात् मोक्षमार्गमा a अटकायत करे तेवां आचरण मा करो. आ मनुष्य देह जेबी मोक्षनी सामग्री अति कष्टे सापडी छे. आ यौवनादि अवस्था वगेरे सघल्लं संध्या समयना वादळांना रंग जेवू छे आ संसारना संयोग एक क्षणवारमा जोत जोतामा नष्ट थवाना छे. जलना बिंदु जेवू | चपळ आ जीवित छे. माटे जिनधर्ममां खंतथी प्रवृत्ति करो. तेम करवाथी थोडा समयमांज शाश्वत पदनी प्राप्ति तमोने थशे.” आ प्रमाणे गौतमस्वामीनी देशनानुं श्रवण करतां राजा गांगलिने प्रतिबोध थयो तेथी ते बोल्या के-'हे भगवन्! हुँ आपनी पासे पत्र ज्या ग्रहण करीश, माता पिताने पूछवानुं पण मने ठीक नथी लागतुं, मारा ज्येष्ठ पुत्रने राज्य उपर स्थापु छ.' आम कही घरे जइ Reमाता पिताने पोतानो विचार पूछतां तेमणे कछु के-जा तुं प्रव्रज्या ले तो पछी अमे पण पत्रज्या गृहण करीशुं. आ पछी पोताना पुत्रने राज्य उपर स्थापी राजा गांगलि पोताना माता तथा पिता सहित प्रव्रजित थया. आ बधा शिष्योने साथे लइ गौतमस्वामी त्यांथी पाछा वळ्या. मार्गे शालमहाशालयोः शुभाध्यवसायेन केवलज्ञानमुत्पन्नं, पुनरग्रे गच्छतां गांगलिप्रमुखाणां त्रयाणामपि For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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