Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्य घन म ५८६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढेकुं तथा कांचनने समान, भावे जोनारा, पंचसमित, त्रिगुप्त, ममकाररहित, मत्सर दोष त्रिमुक्त, जितेंद्रिय, क्रोधादिकपाय जेणे जीत्या छे एवा, निर्दोष ब्रह्मचर्यधारी, स्वाध्याय ध्यानमां निरंतर आसक्त, इतरथी न थइ शके तेवा तपनुं आचरण करनारा, अंतमत आहार सेवनारा तेमज मांस तथा रुधिर शुष्क यतां कुश=दुबळा = शरीरवाळा थाय छे.' गौतमस्वामीए प्ररुपण कराती आदेशना सांभळीने वैश्रवमणना मनमां विसंवाद= संशय =थयो के - 'अहो !! आ साधुओनां शरीर तो विशेषपुष्ट तथा कांतिवाळां | देखाय छे अने साधुओनां गुण वर्णन तो आवां कष्टयुक्त करे छे; आतो वधुं बीजाने समजाववानुं लागे छे अने पोताने आचरवानं | तो जुर्दुज जणाय छे.' आवो तर्क पैश्रमणना मनमां आव्यो ते गौतममुनि जाणी गया ते वखते तेमणे ए वैश्रमणना मनना तर्क निवारण करवा माटे पुंडरीक अध्ययननुं मरुपण आरंभ्युं. पुष्कलावती विजये पुंडरीकियां नगर्यो महापद्मराजाभवत्, तस्य पद्मावती राज्ञी बभूव, तस्याः कुक्षिसंभूतौ पुंडरीककंडरीकनामानौ पुत्रौ जातौ, पितर्युपरते पुंडरीको राजा जातः, कंडरीको युवराजो जातः अन्यदा तत्र स्थविरा साधवः समायाता, स्थिता नलिनीवनोद्याने, कंडरीककसहितो पुंडरीकस्तत्र गतो वैदित्वाग्रे निषण्णो धर्मदेशनां शुभाव, पुंडरीकः श्रावक धर्म प्रपन्नवान्, कंडरीक प्रबुद्धस्तान् प्रत्येवं जगादाहं भवन्निकटे प्रव्रज्यां गृहीष्ये, नवरं पुंडरीक राजानं पृच्छामीत्युक्त्वा पुंडरीकं प्रत्याहं प्रव्रजामीत्युक्तवान् पुंडरीकोऽप्याह इदानीं त्वं मा प्रव्रज्यां गृहाण ? तवाय राज्याभिषेकं करोमि, त्वं निश्चितः सन् राज्यं पालय ? यथेष्टं सुखं भज? कंडरीको नैतदंगीकुरुते, पुनः प्राग्रहमेव कुरुते For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य०१० ५८६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 291