Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तदा तयोर्गौतमः सार्थे दत्तः, गौतमस्वामी ताभ्यां सह पृष्टिचंपायां गतः, तदा गांगलिराजा पितृमातृभ्यां पिठरयशो| मतीभ्यां सह वंदितुमायातः, समागतायां पर्षयेवं देशनां चकार ao भाषांतर यन सूत्रम् अध्य०१० IBE ज्यारे युवराजे पण राज्यनुं मत्याख्यान कर्यु त्यारे शालराजाए तेनी ब्हेनना पुत्र गांगलिनो पोताना राज्यपद उपर अभिषेक |JE ॥५८०॥ ॥५८०॥ कों अने शाल तथा महाशाल बन्नेए प्रव्रज्या गृहण करी, आ वे भाइओनो त्याग जोइ तेनी व्हेन यशोमतीने पण वैराग्य थवाथी ते पण श्रमणा-उपासिका थइ. तदनंतर भगवान् महावीरे ते स्थानकेथी विहार कॉ. शाल तथा महाशाल मुनि एकादशांगk अध्ययन करी तत्त्वज्ञान संपन्न थया. भगवान् त्यांची राजगृह नगरमां समवस्त थया, त्या अनेक भन्यजीवोनेमतिबोध आपी त्यांथी स्वामी चंपामां आव्या त्यारे शाल तथा महाशाल बन्ने स्वामीने वंदवा आव्या, बंदना करी बोल्या के-'हे भगवन् ! जो आपनी आज्ञा होय तो अमे पृष्टिचंपामा जइये त्यां जो कोइ पण भव्यने प्रतिबोध थइ सम्यक्त्व लाभ थाय तो अमने महोटो लाभ uथयो गणाय. स्वामीए ते बभेनी साथे गौतमने आप्या अने आज्ञा आपी तेथी गौतमने साथे लइ बन्ने पृष्टिचंपा नगरीमां गया ते | वारे त्यांना राजा गांगलि पोताना पिता पिठर तथा माता यशोमती साथे लइने वंदन करवा आव्या. ज्यारे पर्षद श्रोतृजन वर्ग=1 आवी बेठो त्यारे ते मुनि आ प्रमाणे देशना करवा लाग्या. भो भव्याः! विषयप्रसक्ता मा तिष्टत ? अनेकदुःखदारुणे संसारे प्रतिबंध मा कुरुत? कष्टेन मनुष्यादिसामग्री JE प्राप्तास्ति, संध्याभरागसदृशो यौवनादिप्रपंचोऽस्ति, क्षणदृष्टो नष्टः सकलसंयोगोऽस्ति, जलविंदुचंचलं जीवितमस्ति, For Private and Personal Use Only

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