Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03 Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ष्टापदाद्रौ चैत्यानि वंदते स तेनैव भवेन सिद्धिं यातीति श्रुत्वा गौतमः स्वामिनं पृच्छति हे भगवनहमष्टापदे चैत्यानि भाषांतर यन सूत्रम् वंदितुं यामीति. JE अध्य०१० ॥५८३॥ ____ आ अवसरे देवोनी परस्पर मलाप थयो जे–'आजे व्याख्यान टाणे भगवाने एम आदेश कर्यो के-'जे भूमिचर पोतानी ॥५८३॥ लब्धिवडे अष्टापद पर्वतमांना चैत्योनुं वंदन करे ते तेज भवथी सिद्धि पामे; आ सांभळी गौतमे स्वामीने पूछ्यु, के-'हे भगवन् ! हु अष्टापदमां चैत्योनी वंदना करवा जाउं? भगवाने 'भले अष्टापद पर्वते जाओ, अने चैत्यने वंदो आम कडं तेथी हर्ष पामी गौतम | स्वामी भगवान्ना चरण वांदी पोते अष्टापद पर्वत गया. भगवतोक्तं व्रजाष्टापदे? तत्र चैत्यानि वंदस्व? ततो हृष्टो गौतमो भगवञ्चरणौ वंदित्वा तत्र गतः, पूर्व हि तत्राष्टापदे तादृग्जनसंवादं दृष्ट्वा पंचपंचशतपरिवारास्त्रयः कोडिन्नदिन्नसेवालाख्यास्तापसा गताःसंति, तेषु कोडिन्नस्तापसः सपरिवार एकांतरोपवासेन भुक्त, पारणे मूलकंदान्याहारयति, सोऽष्टापदे प्रथममेखलारूढोऽस्ति. द्वितीयो दिन्नतापसः सपरिवारः प्रत्यहं षष्टषष्टपारणके परिशटितानि पर्णानि भुक्त, स द्वितीयमेखलामारूढोस्ति. तृतीयः सेवालतापसः सपरिवारो निरंतरमटम पारग के सेवालं भुक्ते, स तृतीयमेखलामारूढोऽस्ति. जे संवाद सांभळीने गौतम अष्टापद पर्वत उपर जवा तत्पर थया तेवोज संवाद सांभळी गौतमना पहेला पांचसो पांचसोना Rell परिवार सहित. कोडिन, दिन क्या सेवाल, एवा नामना त्रण तापस अष्टापद पर्वते पहोंचेला तेमां पहेलो कोडिन्न तापस पोताना For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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