Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययन सूत्रम् भाषांतर अध्य०१० ॥५८२॥ ॥५८२।। शुभध्यानेन केवलज्ञानमुत्पन्नं. एवं सर्वेऽपि ते गौतमसहिताश्चंपायां गताः. गौतमस्वामिना भगवञ्चरणौ प्रणतो, शालमहाशालादिकेवलिनो भगवतः प्रदक्षिणां कृत्वा तीर्थ प्रणम्य केवलपर्षदभिमुखं चलिताः, तावदुत्थितो गौतमस्तान्प्रत्येवं भणति भोः शिष्याः कव्रजत? बंदत तीर्थकरं? तावता भगवान् माह गौतम! केवलिनो माशातयेति भगवद्वचसा गौतमस्तान् क्षामयति, मनस्येवं च चिंतयति, अहं न सेत्स्यामि, मदीयाः शिष्याः केवलज्ञानमासादयंति, कित्वद्य यावन्मया केवलज्ञानं न प्राप्त. मार्गमां शाल तथा महाशाल बन्ने शुभ अध्यवसायने परिणामे केवलज्ञान उत्पन्न थयु. फरी आगळ जतां गांगलि पिठर तथा | यशोमती ए त्रणेने पण शुभ ध्यानना प्रभावथी केवळज्ञाननो अविर्भाव थयो. आम सर्वे गौतम सहित पाछ। चंपानगरीमां आव्या त्यारे गौतमस्वामीए भगवान् पासे जइ चरणमां प्रणाम कर्या. पण पेला शाल तथा महाशाल आदिक केवली वर्ग तो भगवान्ने प्रदक्षिणा करी तीर्थने प्रणाम करी केवल पर्षदने अभिमुख चालवा मांडे छे त्यां गौतमे उठीने पडकार्या के-'हे शिष्यो! तमे क्यां जाओ छो? आ तीर्थकरनी वंदना करो.' त्यारे भगवान् बोल्या के 'हे गौतम! केवलीनी आशातना मा करो' आq भगवाननु वचन सांभळीने गौतमस्वामी ते केवळज्ञानिओने खमाववा लाग्या, अने मनमां विचार्यु के-'हुँ तो हजी सिद्धि पाम्यो नहिं त्यां तो आ मारा शिष्यो केवळज्ञानने प्राप्त थइ गया मने तो हजी सुधी पण केवळज्ञान प्राप्त न थयु. इतोऽवसरे मिथो देवानामेवं संलापो वर्तते यदद्य भगवता व्याख्यानावसरे एवमादिष्टं यो भूमिचरः स्वलब्ध्या For Private and Personal Use Only

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