Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययन सूत्रम् भाषांतर अध्य०१० ॥५७९॥ ॥५७९॥ د لك لك فقال له : فقلنا فيها الطاللافنا للمطالقاد एक समये भगवान् श्रीमहावीर त्यां (पृष्टिचंपानगरीमा) समवसूत थयाम्पधार्या. शालराजा पोताना भाइ युवराज महाशाल वगेरेने साये लइ त्यां आवी भगवान्ने चंदन करी आगळ पृथ्वी तळ उपर बेसी श्रीमहावीरे करेली देशना सांभळवा लाग्या"मनुष्य जन्म आदिक धर्म साधननी सामग्री मळवी घणी दुर्लभ छे, तेनी साथे मिथ्यात्वादिक धर्मना प्रतिबंधक हेतु भो घणा छे, वळी सांसारिक महोटां कार्योना आरंभ करवा ए बधां नरक प्राप्तिना कारणो छे, तेमज जन्म जरा मरणादि दुःखोथी भरेलो आ संसारमा परिभ्रमणना हेतुओ नाना प्रकारना कषायो छे; ए तमाम कषायनो परित्याग थाय त्यारे मोक्ष प्राप्ति थाय.' आ प्रमाणे भगवद्देशनानुं श्रवण करतां शालराजा संवेग पामीने जिनेन्द्र प्रत्ये एम बोल्या के-हे भगवन् ! हुं तो हवे आपना चरणमा रही तपस्या ग्रहण करीश तेने माटे मारा अनुज महाशालने राज्यपर स्थापीने हुँ पालो आq त्यां सुधी आपे अन्यत्र विहार न करवो, | भगवाने का-'प्रतिबंध नज करशो? त्यारे शालराजा घरे जइ पोताना भाइ महाशालने कहेवा लाग्या के बंधो ! आ राज्य तमारु समजी तमे तेनुं प्रतिपालन करो अने हुँ तो व्रत-दीक्षा ग्रहण करीश, महाशाले उत्तरमा कर्जा के-'हे भाइ ! तमारी पेठे हुँ पण कंटाळ्यो छु, आ महाव्यवसाय पूर्ण राज्यनुं मारे प्रयोजन नथी. मारे पण प्रव्रज्या ग्रहण करवानो मनोरथ थयो छे. तदा शालराजेन भगिनीपुत्रो गांगलिः स्वराज्येऽभिषिक्तः, शालमहाशालौ द्वावपि प्रवजितो, भगिनी श्रमणोपासिका जाता, भगवांस्ततो विहारं चकार. शालमहाशालमुनी एकादशोगान्यधीतो, भगवान् राजगृहे समवमृतः, तत्रानेकभन्यान् प्रतियोध्य स्वामी चंपायां गतः, तत्र शालमहाशाली स्वामिनंप्रत्येवमूचतुर्यदि भवदाज्ञा स्यात्तदा वयं | पृष्टिचंपायां व्रजामः, यदि कश्चित्तत्र प्रतिघुध्यते सम्यक्त्वं वा लभते तदास्माकं महान् लाभो भवतीति. स्वामिना For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 291