Book Title: Upnishado ka Jain Tattvagyan par Prabhav Author(s): Anita Bothra Publisher: Anita Bothra View full book textPage 2
________________ तुलना के विभिन्न आधार : इस शोधनिबन्ध के शीर्षक में उपनिषद और जैन तत्त्वज्ञान की तुलना करना अपेक्षित है । लेकिन तुलना के लिए सचमुच उनमें विषय, शैली, काल आदि दृष्टि से साम्य होना आवश्यक है । यहाँ हम स्पष्ट करते हैं कि उपनिषद विभिन्न ऋषियों द्वारा विभिन्न काल में, प्रकट की हुई विविधतापूर्ण विचारधाराएँ हैं । माना गया है कि छह वैदिक दर्शनों का वे मूलाधार हैं । जैनदर्शन की अगर बात करें तो तत्त्वार्थसूत्र यह संस्कृत सूत्रबद्ध प्रमाणित ग्रन्थ है । उसमें वाङ्मयीन अंश पाये नहीं जाते । तत्त्वार्थ जिस पर आधारित हैं, वे ग्रन्थ हैं अर्धमागधी और शौरसेनी भाषा में निबद्ध आगमग्रन्थ ! वे प्राचीन हैं और उनमें तत्त्वज्ञान, आचार, संवाद आदि सब प्राय: संमिश्र स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है । अगर तुलना करनी ही है तो आगम और उपनिषदों की करनी चाहिए । शैलीगत साम्य : अगर हम प्राचीनतम अर्धमागधी-ग्रन्थ 'आचारांगसूत्र' पढे तो निम्नप्रकारक कई वाक्य उसमें पाये जाते हैं । 'लोकसार' अध्ययन में 'आत्मा' के बारे में कहा है - सव्वे सरा णियस॒ति । तक्का जत्थ ण विज्जइ । मई तत्थ ण गाहिया । से ण दीहे, ण हस्से -- । ण किण्हे, ण णीले --- | ण सुब्भिगंधे, ण दुरभिगंधे । ण तित्ते, ण कडुए --- । ण कक्खडे, ण मउए --- । ण काऊ । ण रुहे । ण संगे । ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णहा । परिण्णे सण्णे । उवमा ण विज्जए । अरूवी सत्ता । से ण सद्दे, ण रूवे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे, इच्चेताव ।' प्राय: यही 'आत्मवर्णन' प्रमुखता से कठोपनिषद में पाया जाता है । यम-नचिकेत संवाद में आत्मा के बारे में कहा है कि - नैषा तर्केण मतिरापनेया । --- अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो । अणोरणीयान्महतो महीयानात्मास्य जन्तोर्निहितो गुहायाम् । नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन । अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं तथाऽरसं नित्यमगन्धवच्चयत् ।' हम यह कह सकते हैं कि साक्षात्कारी महानुभावों ने किये हुए आत्मसम्बन्धी वर्णनों में साम्य तो अनिवार्य रूप से दिखायी देगा ही । केवल आत्मस्वरूप के ही नहीं किन्तु मोक्षवर्णन में भी प्राय: थोडी पारिभाषिक भिन्नता छोडकर समान अनुभूति ही अंकित की गयी है । परन्तु इस आधार से हम मूलगामी तत्त्वविचारों का साम्य नहीं सिद्ध कर सकते । एक-दूसरे का प्रभाव भी इसे माना नहीं जा सकता । प्राचीन अर्धमागधी आगम एवं उपनिषद इन दोनों में कई शैलीगत साम्य दिखायी देते हैं। उपनिषद एवं अर्धमागधी आगमों में प्राय: गुरु-शिष्य 'संवाद' के रूप में तत्त्वज्ञान प्रस्तुत किया गया है । यमनचिकेत, इन्द्र-प्रजापति, याज्ञवल्क्य और उसकी पत्नी मैत्रेयी', आरुणी और उसका पुत्र श्वेतकेतु आदि अनेक संवाद उपनिषदों में पाये जाते हैं । पूरी महावीरवाणी सुधर्मा और जम्बु के संवादरूप मेंPage Navigation
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